गीता 18:9

गीता अध्याय-18 श्लोक-9 / Gita Chapter-18 Verse-9

प्रसंग-


अब उत्तम श्रेणी के सात्त्विक त्याग के लक्षण बतलाये जाते है-


कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन ।
संगं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्त्विको मत: ॥9॥



हे अर्जुन[1]! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है – वही सात्त्विक त्याग माना गया है ॥9॥

A prescribed duty which is performed simply because it has to be performed, giving up attachment and fruit, that alone has been recognized as the Sattvika form of renunciation. (9)


अर्जुन = हे अर्जुन ; कार्यम् = करना कर्तव्य है ; इति = ऐसे (समझकर) ; एव = ही ; यत् = जो ; नियतम् = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ कर्तव्य ; कर्म = कर्म ; सग्डम् = आसक्ति को ; च = और ; फलम् = फलको ; त्यक्त्वा = त्याग कर ; क्रियते = किया जाता है ; स: = वह ; एव = ही ; सात्त्विक: = सात्त्विक ; त्याग: = त्याग ; मत: = माना गया है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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