गीता 18:63

गीता अध्याय-18 श्लोक-63 / Gita Chapter-18 Verse-63

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] को अन्तर्यामी परमेश्वर की शरण ग्रहण करने के लिये आज्ञा देकर अब भगवान् उक्त उपदेश का उपसंहार करते हुए कहते हैं-


इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्राद्गुह्रातरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥63॥



इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तुझसे कह दिया। अब तू इस रहस्य युक्त ज्ञान को पूर्णतया भलीभाँति विचार कर, जैसे चाहता है वैसे ही कर ॥63॥

Thus has this wisdom, more secret than secrecy itself, been imparted to you by Me. Fully pondering it, do as you like. (63)


इति = इस प्रकार (यह) ; गुह्मात् = गोपनीय से (भी) ; गुह्मतरम् = अति गोपनीय ; ज्ञानम् = ज्ञान ; मया = मैंने ; ते = तेरे लिये ; आख्यातम् = कहा है ; एतत् = इस रहस्य युक्त ज्ञानको ; अशेषेण = संपूर्णता से ; विमृश्य = अच्छी प्रकार विचार के (फिर तूं) ; यथा = जैसे ; इच्छसि = चाहता है ; तथा = बैसे ही ; कुरु = कर



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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