गीता 18:35

गीता अध्याय-18 श्लोक-35 / Gita Chapter-18 Verse-35

प्रसंग-


अब तामसी धृति का लक्षण बतलाते हैं-


यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृति: सा पार्थ तामसी ॥35॥



हे पार्थ[1]! दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धारणशक्ति के द्वारा निद्रा, भय, चिन्ता और दु:ख को तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता अर्थात् धारण किये रहता है, वह धारणशक्ति तामसी है ॥35॥

The firmness by which an evil-minded person refuses to shake off, i.e., clings to sleep, fear, anxiety, sorrow and vanity as well, that firmness is ignorance (Tamasika). (35)


यत् = जो (कुछ) ; कर्म = कर्म है ; (तत्) = वह (सब) ; एव = ही ; दु:खम् = दु:खरूप है ; इति = ऐसे (समझकर) ; कायक्लेशभयात् = शारीरिक क्लेश के भय से कर्मों का) ; त्यजेत् = त्याग कर दे ; स: = वह पुरुष (उस) ; राजसम् = राजस ; त्यागम् = त्याग को ; कृत्वा = करके ; एव = भी ; त्यागफलम् = त्याग के फलको ; न लभेत् = प्राप्त नहीं होता है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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