गीता 18:11

गीता अध्याय-18 श्लोक-11 / Gita Chapter-18 Verse-11

प्रसंग-


उपर्युक्त श्लोक में सात्त्विक त्यागी को यानि निष्काम भाव से कर्तव्य कर्म का अनुष्ठान करने वाले कर्मयोगी को सच्चा त्यागी बतलाया। इस पर यह शंका होती है। कि निषिद्ध और काम्य कर्मों की भाँति अन्य कर्मों का स्वरूप से त्याग कर देने वाला मनुष्य भी तो सच्चा त्यागी हो सकता है, फिर केवल निष्काम भाव से कर्म करने वाले को ही सच्चा त्यागी क्यों कहा गया। इसलिये कहते हैं-


न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषत: ।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते ॥11॥



क्योंकि शरीरधारी किसी भी मनुष्य के द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग किया जाना शक्य नहीं है; इसलिये जो कर्म फल का त्यागी है, वही त्यागी है, यही कहा जाता है ॥11॥

Since all actions cannot be given up in their entirety by anyone possessing a body, he alone who renounces the result of actions is called a man of renunciation.(11)


हि = क्योंकि ; देहभृता = हेह धारी पुरुष के द्वारा ; अशेषत: = संपूर्णता से ; कर्माणि = सब कर्म ; त्यक्तुम् = त्यागे जाने को ; न शक्यम् = शक्य नहीं हैं ; (तस्मात्) = इससे ; य: = जो पुरुष ; कर्मफलत्यागी = कर्मो के फल का त्यागी है ; स: = वह ; तु = ही ; त्यागी = त्यागी है ; इति = ऐसे ; अभिधीयते = कहा जाता है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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