गीता 17:17

गीता अध्याय-17 श्लोक-17 / Gita Chapter-17 Verse-17

प्रसंग-


अब सात्त्विक तप के लक्षण बतलाते हैं-


श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरै: ।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तै: सात्त्विकं परिचक्षते ॥17॥



फल को न चाहने वाले योगी पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किये हुए उस पूर्वोक्त तीन प्रकार के तप को सात्त्विक कहते हैं ॥17॥

This threefold penance performed with supreme faith by yogis expecting no return is called Sattvika (17)


अफलाकाक्ष्डिभि: = फलको न चाहने वाले ; युक्तै: = निष्कामी योगी ; नरै: = पुरुषोंद्वारा ; परया = परम ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; तप्तम् = किये हुए ; तत् = उस (पूर्वोंक्त) ; त्रिविघम् = तीन प्रकार के ; तप: = तपको (तो) ; सात्त्विकम् = सात्त्विक ; परिचक्षते = कहते हैं



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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