गीता 15:9

गीता अध्याय-15 श्लोक-9 / Gita Chapter-15 Verse-9

श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥9॥



यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु और त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके अर्थात् इन सबके सहारे से ही विषयों का सेवन करता है ॥9॥

It is while dwelling in the senses of hearing, sight, touch, taste and smell, as well as in the mind, Jivatma enjoys the objects of senses. (9)


अयम् = यह जीवात्मा ; श्रोत्रम् = श्रोत्र ; चक्षु: = चक्षु ; च = और ; स्पर्शनम् = त्वचाको ; च = तथा ; रसनम् = रसना ; घ्राणम् = घ्राण ; च = और ; मन: = मनको ; अघिष्ठाय = आश्रम करके अर्थात् इन सबके सहारे से ; एव = ही ; विषयान् = विषयों को ; उपसेवते = सेवन करता है;



अध्याय पन्द्रह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-15

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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