गीता 15:18

गीता अध्याय-15 श्लोक-18 / Gita Chapter-15 Verse-18

यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: ।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ॥18॥



क्योंकि मैं नाशवान् जडवर्ग क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद[1] में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ ॥18॥

Since I am wholly beyond the perishable world of matter of Ksetra, and am superior even to the imperishable soul, hence I am known as the Purusottama in the world as well as in the Vedas. (18)


यस्मात् = क्योंकि ; अहमृ = मैं ;क्षरम् = नाशवान् जडवर्ग क्षेत्र से तो ; अतीत: = सर्वथा अतीत हूँ ; च = और (माया में स्थित) ; पुरुषोत्तम: = पुरुषोत्तम (नाम से) ; अक्षरात् = अविनाशी जीवात्मा से ; अपि = भी ; उत्तम: = उत्तम हूँ ; अत: = इसलिये ; लोके = लोक में ; च = और ; वेदे = वेद में (भी) ;प्रथित: = प्रसिद्ध ; अस्मि = हूँ ;



अध्याय पन्द्रह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-15

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः