गीता 13:4

गीता अध्याय-13 श्लोक-4 / Gita Chapter-13 Verse-4

प्रसंग-


तीसरे श्लोक में ' क्षेत्र' और 'क्षेत्रज्ञ' के जिस तत्त्व को संक्षेप में सुनने के लिये भगवान् ने अर्जुन[1] से कहा है- अब उसके विषय में ऋषि, वेद और ब्रह्म सूत्र की उक्ति का प्रमाण देकर भगवान् ऋषि, वेद[2] और ब्रह्म सूत्र को आदर देते हैं –


ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधै: पृथक् ।
ब्रह्मासूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै: ॥4॥



यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्त्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेद मन्त्रों द्वारा भी विभागपूर्वक कहा गया है, तथा भली-भाँति निश्चय किये हुए युक्तियुक्त ब्रह्मा सूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है ॥4॥

The truth about the ksetra and the ksetrajna has been expounded by the seers in manifold ways; again, it has been separately stated in different vedic chants and also in the conclusive and reasoned texts of the Brahmasutras. (4)


ऋषिभि: = ऋषियों द्वारा ; बहुधा गीतम् = कहा गया है अर्थात् समझाया गया है ; च = तथा ; विनिश्चितै: = अच्छी प्रकार निश्चय किये हुए ; हेतुमभ्दि: = युक्तियुक्त ; च = और ; विविधै: = नाना प्रकार के ; छन्दोभि: = वेदमन्त्रों से ; पृथक् = विभागपूर्वक ; गीतम् = कहा गया है ; ब्रह्मसूत्रपदै: = ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा ; एव = भी (वैसे ही कहा गया है) ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।

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