गीता 11:5

गीता अध्याय-11 श्लोक-5 / Gita Chapter-11 Verse-5

प्रसंग-


परम श्रद्धालु और परम प्रेमी अर्जुन[1] के इस प्रकार प्रार्थना करने पर तीन श्लोकों में भगवान् अपने 'विश्व रूप' का वर्णन करते हुए उस देखने के लिये अर्जुन को आज्ञा देते हैं-

श्रीभगवानुवाच-


पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश: ।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥5॥



श्रीभगवान् बोले –


हे पार्थ[2]! अब तू मेरे सैकड़ों–हज़ारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा नाना आकृति वाले अलौकिक रूपों को देख ॥5॥

Shri Bhagavan said-


Arjuna behold presently in hundreds and thousands, my multifarious divine forms, of various colours and shapes. (5)


शतश: = सैकड़ों; अथ = तथा; सहस्रश: = हज़ारों; नानाविधानि = नाना प्रकारके; नानावर्णाकृतीनि = नानावर्ण तथा आकृतिवाले; दिव्यानि = अलौकिकश; रूपाणि = रूपोंको; पश्य = देख



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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