गीता 11:30

गीता अध्याय-11 श्लोक-30 / Gita Chapter-11 Verse-30

प्रसंग-


दोनों सेनाओं के लोगों के प्रवेश का दृष्टान्त द्वारा वर्णन करके अब उन लोगों को भगवान् किस प्रकार नष्ट कर रहे हैं, इसका वर्णन किया जाता है-


लेलिह्रासे ग्रसमान: समन्ता-
ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भि: ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं
भासस्तवोग्रा: प्रतपन्ति विष्णो ॥30॥



आप उन सम्पूर्ण लोकों को प्रज्वलित मुखों द्वारा ग्रास करते हुए सब ओर से बार- बार चाट रहे हैं, हे विष्णो[1]! आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज़ के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है ॥30॥

Swallowing through your blazing mouths; You are licking all those pepole on all sides. Lord, your terrible splendours are burning the entire universe, filling it with radiance. (30)


समग्रान् = संपूर्ण; लोकान् = लोकोंको; ज्वलभ्दि = प्रज्वलित; वदनै: = मुखों द्वारा ; ग्रसमान: ग्रसन करते हुए; समन्तात् = लेलिह्रासे = चाट रहे हैं; विष्णों = हे विष्णों; उग्रा: = उग्र; समग्रम् = संपूर्ण; जगत् = जगत् को; तेजोभि: = तेज़ के द्वारा; आपूर्य = परिपूर्ण करके; प्रतपन्ति = तपायमान करता है



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, विष्णो, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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