गीता 11:28

गीता अध्याय-11 श्लोक-28 / Gita Chapter-11 Verse-28

प्रसंग-


दोनों सेनाओं के योद्धाओं को अर्जुन[1] किस प्रकार भगवान के विकराल मुखों में प्रविष्ट होते देख रहे हैं, अब दो श्लोकों में उसका पहले नदियों के जल के दृष्टान्त से और तदनन्तर पतंगे के दृष्टान्त से स्पष्टीकरण कर रहे हैं-


यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगा:
समुद्रमेवाभिमुखा द्रविन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ॥28॥



जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं ॥28॥

As the myriad streams of rivers rush towards the sea alone, so do those warriors of the mortal world enter your flaming mouths. (28)


यथा = जैसे; नदीनाम् = नदियों के; बहव: = बहुत से; अम्बुवेगा: = जल के प्रवाह; अभिमुखा: = सन्मुख; द्रवन्ति = दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं; अमी = वे; नरलोकवीरा: = शूरवीर मनुष्यों के समुदाय(भी); तब = आपके; अभिविज्वलन्ति = प्रज्वलित हुए; वक्त्राणि = मुखोंमें; विशन्ति = प्रवेश करते हैं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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