गीता 11:2

गीता अध्याय-11 श्लोक-2 / Gita Chapter-11 Verse-2


भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तशो मया ।
त्वत्त: कमलपत्राक्ष माहात्मयमपि चाव्ययम् ॥2॥



क्योंकि हे कमलनेत्र[1]! मैंने आपसे भूतों की उत्पत्ति और प्रलय विस्तारपूर्वक सुने हैं तथा आपकी अविनाशी महिमा भी सुनी है ॥2॥

For, Krishna, I have heard from you in detail an account of the evolution and dissolution of being, and also your immortal glory. (2)


हि = क्योंकि; कमलपत्राक्ष = हे कमलनेत्र; मया = मैंने; भूतानाम् = भूतोंकी; भवाप्ययौ = उत्पत्ति और प्रलय; त्वत्त: = आपसे; विस्तरश: = विस्तारपूर्वक; श्रुतौ = सुने हैं; च = तथा(आपका); अव्ययम् = अविनाशी; माहात्मयम् = प्रभाव; अपि = भी(सुना है)



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मधुसूदन, केशव, कमलनेत्र, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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