गीता 11:1

गीता अध्याय-11 श्लोक-1 / Gita Chapter-11 Verse-1

एकादशोऽध्याय प्रसंग-


इस अध्याय में अर्जुन[1] के प्रार्थना करने पर भगवान ने उनको अपने विश्व रूप के दर्शन करवाये हैं। अध्याय के अधिकांश में केवल विश्व रूप और उनके स्तवन का ही प्रकरण है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'विश्व रूप दर्शन योग' रखा गया है।

प्रसंग-


ग्यारहवें अध्याय के आरम्भ में पहले चार श्लोकों में भगवान की और उनके उपदेश की प्रशंसा करते हुए अर्जुन उनसे विश्व रूप का दर्शन कराने के लिय प्रार्थना करते हैं-

अर्जुन उवाच-


मदनुग्रहाय परमं गुह्रामध्यात्मसंज्ञितम् ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥1॥



अर्जुन बोले-


मुझ पर अनुग्रह करने के लिये आपने जो परम गोपनीय अध्यात्मविषयक वचन अर्थात् उपदेश कहा, उससे मेरा यह अज्ञान नष्ट हो गया है ॥1॥

Arjuna said:


Thanks to the most profound words of spiritual wisdom that you have spoken out of kindness to me, this delusion of mine has entirely disappeared. (1)


मदनुग्रहाय = मेरे पर अनुग्रह करने के लिये; परमम् = परम; गुह्राम् = गोपनीय; अध्यात्मसंज्ञितम् = अध्यात्मविषयक; वच: वचन अर्थात् उपदेश; त्वया = आपके द्वारा; यत् = जो; उक्तम् = कहा गया; तेन = उससे; अयम् = यह; मोह: = अज्ञान; विगत: = नष्ट हो गया है;



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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