गीता रहस्य -तिलक पृ. 595

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

Prev.png
श्रीमद्भगवद्गीता : प्रथम अध्याय

 
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:।
मामका: पांडवाश्चौव किमकुर्वत संजय ॥ 1 ॥

पहला अध्याय

तिलक के अनुसार- [भारतीय युद्ध के आरम्भ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जिस गीता का उपदेश किया है, उसका लोगों में प्रचार कैसे हुआ, इसकी परम्परा वर्तमान महाभारत ग्रंथ में ही इस प्रकार दी गई है:- युद्ध आरम्भ होने से प्रथम व्यासजी ने धृतराष्ट्र से जा कर कहा कि “यदि तुम्हारी इच्छा युद्ध देखने की हो तो मैं तुम्हें दृष्टि देता हूँ”। इस पर धृतराष्ट्र ने कहा मैं अपने कुल का क्षय अपनी दृष्टि से नहीं देखना चाहता। तब एक ही स्थान पर बैठे बैठे, सब बातों का प्रत्यक्ष ज्ञान हो जाने के लिये संजय नामक सूत को व्यासजी ने दिव्य-दृष्टि दे दी। इस संजय के द्वारा युद्ध के अविकल वृत्तांत धृतराष्ट्र को अवगत करा देने का प्रबन्ध करके व्यासजी चले गये[1]। जब आगे युद्ध में भीष्म आहत हुए, और उक्त प्रबन्ध के अनुसार समाचार सुनाने के लिये पहले संजय धृतराष्ट्र के पास गया, तब भीष्म के बारे में शोक करते हुए धृतराष्ट्र ने संजय को आज्ञा दी कि युद्ध की सारी बातों का वर्णन करो। तदनुसार संजय ने पहले दोनों दलों की सेनाओं का वर्णन किया; और, फिर धृतराष्ट्र के पूछने पर गीता बतलाना आरम्भ किया है। आगे चल कर यही सब वार्ता व्यासजी ने अपने शिष्य को, उन शिष्यों में से वैशम्पायन ने जनमेजय को, और अंत में सौती ने शौनक को सुनाई है। महाभारत की सभी छपी हुई पोथियों में भीष्मपर्व के 25वें अध्याय से 42वें अध्याय तक यही गीता कही गई है। इस परम्परा के अनुसार-]

धृतराष्ट्र ने पूछा–(1) हे संजय! कुरुक्षेत्र की पुण्यभूमि में एकत्रित मेरे और पाण्डु के युद्धेच्छुक पुत्रों ने क्या किया?

तिलक के अनुसार- [हस्तिनापुर के चहुँ ओर का मैदान कुरुक्षेत्र है। वर्तमान दिल्ली शहर इसी मैदान पर बसा हुआ है। कौरव-पाण्डवों का पूर्वज, कुरु नाम का राजा इस मैदान को हल से बडे कष्ट पूर्वक जोता करता था; अतएव इसको क्षेत्र (या खेत) कहते हैं। जब इन्द्र ने कुरु को यह वरदान दिया, कि इस क्षेत्र में जो लोग तप करते करते, या युद्ध में, मर जावेंगे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, तब उसने इस क्षेत्र में हल चलाना छोड़ दिया[2]। इन्द्र के इस वरदान के कारण ही यह क्षेत्र धर्म-क्षेत्र या पुण्य-क्षेत्र कहलाने लगा। इस मैदान के विषय में यह कथा प्रचलित है, कि यहाँ पर परशुराम ने इक्कीस बार सारी पृथ्वी को नि:क्षत्रिय करके पितृ-तर्पण किया था; और अर्वाचीन काल में भी इसी क्षेत्र पर बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ हो चुकी हैं।]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मभा, भीष्म. 2
  2. मभा. शल्य. 53

संबंधित लेख

गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः