गीता रहस्य -तिलक पृ. 577

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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परिशिष्‍ट-प्रकरण
भाग 6–गीता और बौद्ध ग्रंथ ।

वे वर्णन, एवं बौद्ध भिक्षुओं या अर्हतों के वर्णन अथवा अहिंसा आदि नीतिधर्म, दोनों धर्मों में एक ही से-और कई स्थानों पर शब्दश: एक ही से–देख पड़ें, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है, ये सब बातें मूल वैदिक-धर्म ही की हैं। परंतु बौद्धों ने केवल इतनी ही बातें वैदिकधर्म से नहीं ली हैं, प्रत्युत बौद्धधर्म के दशरथजातक के समान जातकग्रंथ भी प्राचीन वैदिक पुराण-इतिहास की कथाओं के, बुद्धधर्म के अनुकूल तैयार किये हुए, रूपांतर है। न केवल बौद्धों ने ही, किंतु जैनों ने भी अपने अभिनवपुराणों में वैदिक कथाओं के ऐसे ही रूपांतर कर लिये है। सेल[1] साहब ने तो यह लिखा है कि ईसा के अनन्तर प्रचलित हुए मुहम्मदी धर्म में ईसा के एक चरित्र का इसी प्रकार विपर्यास कर लिया गया है। वर्तमान समय की खोज से यह सिद्ध हो चुका है, कि पुरानी बाइबल में सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय तथा नूह आदि की जो कथाएँ है वे सब प्राचीन खाल्दी जाति की धर्म-कथाओं के रूपांतर है, कि जिनका वर्णन यहूदी लोगों का किया हुआ है। उपनिषद, प्राचीन धर्मसूत्र, तथा मनुस्मृति में वर्णित कथाएँ अथवा विचार जब बौद्ध ग्रंथों में इस प्रकार–कई बार तो बिलकुल शब्दश:-लिये गये हैं, तब यह अनुमान सहज ही हो जाता है, कि ये असल में महाभारत के ही हैं। बौद्ध-ग्रंथप्रणेताओं ने इन्हें वहीं से उदधृत कर लिया होगा।

वैदिक धर्मग्रंथों के जो भाव और श्लोक बौद्ध ग्रंथों में पाये जाते हैं, उनके कुछ उदाहरण ये हैं:-“जय से वैर की वृद्धि होती है; और बर से बैर शांत नहीं होता”[2], “दूसरे के क्रोध को शांति से जीतना चाहिये” आदि विदुरनीति[3], तथा जनक का यह वचन कि “यदि मेरी एक भुजा में चन्दन लगाया जाय और दूसरी काट कर अलग कर दी जाय तो भी मुझे दोनों बातें समान ही हैं”[4]; इनके अतिरिक्त महाभारत के और भी बहुत से श्लोक बौद्ध ग्रंथों में शब्दश: पाये जाते है[5]। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, तथा मनुस्मृति आदि वैदिक ग्रंथ बुद्ध की अपेक्षा प्राचीन हैं, इसलिये उनके जो विचार तथा श्लोक बौद्ध ग्रंथों में पाये जाते हैं, उनके विषय में विश्वास-पूर्वक कहा जा सकता है कि उन्हें बौद्ध ग्रंथकारों ने उपर्युक्त वैदिक ग्रंथों ही से लिया है। किंतु यह बात महाभारत के विषय में नहीं कही जा सकती। महाभारत में ही बौद्ध डागोबाओं का जो उल्लेख है उससे, स्पष्ट होता है कि महाभारत का अंतिम संस्करण बुद्ध के बाद रचा गया है। अतएव केवल श्लोकों के सादृश्य के आधार पर यह निश्चय नहीं किया जा सकता, कि वर्तमान महाभारत बौद्ध ग्रंथों के पहले ही का है, और गीता तो महाभारत का एक भाग है इसलिये वही न्याय गीता को भी उपयुक्त हो सकेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. See Sale’s Koran, “To the Reader” (Preface), p. x, and the preliminary Discourse, Sec. IV. p. 58 (Chandos Classics Edition).
  2. म. भा. उद्यो. 71. 59 और 63
  3. म. भा. उद्यो. 38. 73
  4. म. भा. शां. 320. 36
  5. धम्मपद 5 और 223 तथा मिलिन्दप्रश्न 7. 3. 5

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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