गीता रहस्य -तिलक पृ. 511

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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परिशिष्‍ट-प्रकरण
भाग 1-गीता और महाभारत।

गीता-ग्रंथ सदैव पठनीय होने के कारण वेदों के सहष पूरी गीता को कण्ठाग्र करने वाले लोग भी पहले बहुत थे और अब तक भी कुछ हैं। यही कारण है कि वर्तमान गीता के बहुत से पाठान्तर नहीं है और जो कुछ भिन्न पाठ है वे सब टीकाकारों को मालूम है। इसके सिवा यह भी कहा जा सकता हैं कि इसी हेतु से गीता-ग्रंथ में बराबर 700 श्लोक रखें गये हैं कि उसमें कोई फेरफार न कर सके। अब प्रश्‍न यह हैकि बंबई तथा मद्रास में मुद्रित महाभारत की प्रतियों ही में 45 श्लोक- और, वे भी सब भगवान ही के- ज्य़ादा कहाँ से आगये? संजय और अर्जुन के श्लोकों का जोड़, वर्तमान प्रतियों में और इस गणना में, समान अर्थात 124 हैं; और ग्यारहवें अध्याय के ‘‘पश्यामि देवान्०’’[1] आदि 17 श्लोकों के साथ, मत-भेद के कारण सम्भव है, कि अन्य दस श्लोक भी संजय के समझे जावें; इसलिए कहा जा सकता है कि यद्यपि संजय और अर्जुन के श्लोकों का जोड़ समान ही है, तथापि प्रत्येक के श्लोकों को पृथक पृथक गिनने में कुछ फ़र्क़ हो गया होगा। परन्तु इस बात का कुछ पता नहीं लगता, कि वर्तमान प्रतियों में भगवान के जो 575 श्लोक हैं, उनके बदले 620 (अर्थात् 45 अधिक) श्लोक कहाँ से आ गये! यदि यह कहते हैं कि गीता के ‘स्तोत्र’ या ‘ध्यान’ या इसी प्रकार के अन्य किसी प्रकरण का इसमें समावेश किया गया होगा, तो देखते हैं कि बंबई में मुद्रित महाभारत की पोथी में वह प्रकरण नहीं है; इतना ही नहीं, किन्तु इस पोथीवाली गीता में भी सात सौ श्लोक ही है।

अतएव, वर्तमान सात सौ श्लोकों की गीता ही को प्रमाण मानने के सिवा अन्य मार्ग नहीं है। यह हुई गीता की बात। परन्तु, जब महाभारत की ओर देखते हैं,तो कहना पड़ता है कि यह विरोध कुछ भी नहीं है। स्वयं भारत ही में यह कहा है, कि महाभारत-संहिता की संख्या एक लाख है। परन्तु रावबहादुर चिंतामणिराव वैद्य ने महाभारत के अपने टीका-ग्रंथ में स्पष्ट करके बतलाया है, कि वर्तमान प्रकाशित पोथियों में उतने श्लोक नहीं मिलते; और, भिन्न भिन्न पर्वों के अध्यायों की संख्या भी, भारत के आरंभ में दी गई अनुक्रमाणिका के अनुसार, नहीं है। ऐसी अवस्था मे, गीता और महाभारत की तुलना करने के लिये, इन दोनों ग्रंथों की किसी न किसी विशेष पोथी का आधार लिये बिना काम नहीं चल सकता; अतएव श्रीमच्छंकराचार्य ने जिस सात सौ श्लोकों वाली गीता को प्रमाण माना है उसी गीता को, और कलकत्ते के बाबू प्रतापचन्द्रराय-द्वारा प्रकाशित महाभारत की पोथी को, प्रमाण मान कर हमने इन दोनों ग्रंथों की तुलना की है; और, हमारे इस ग्रंथ में उदधृतमहाभारत के श्लोकों का स्थान-निर्देश भी, कलकत्ते में मुद्रित उक्त महाभारत के अनुसार ही किया गया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 11.15-31

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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