गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
ग्यारहवाँ प्रकरण
यदि ऐसा न हो, तो ‘तस्य कार्य न विद्यते’ इत्यादि श्लोकों में बतलाये हुए सिद्धान्त को दृढ़ करने के लिये भगवान ने जो अपना उदाहरण दिया है वह (अलग) असंबद्ध सा हो जायगा और यह अनवस्था प्राप्त हो जायगी कि, सिद्धान्त तो कुछ और है; और उदाहरण ठीक इसके विरुद्ध कुछ और ही है। इस अनवस्था को टालने के लिये संन्यासमार्गीय टीकाकार “तस्मादसक्त: सततं कार्य कर्म समाचर” के ‘तस्मात्’ शब्द का अर्थ भी निराली रीति से किया करते हैं। उसका कथन है कि गीता का मुख्य सिद्धान्त तो यही है, कि ज्ञानी पुरुष कर्म छोड़ दे; परन्तु अर्जुन ऐसा ज्ञानी था नहीं इसलिये–'तस्मात'-भगवान ने उसे कर्म करने के लिये कहा है। हम ऊपर कह आये हैं कि ‘गीता के उपदेश के पश्चात् भी अर्जुन अज्ञानी ही था’ यह युक्ति ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त, यदि ‘तस्मात्’ शब्द का अर्थ इस प्रकार खींच तान कर लगा भी लिया, तो “न मे पार्थाऽस्ति कर्त्तव्यम् “ प्रभृति लोकों में भगवान् ने- “अपने किसी कर्तव्य के न रहने पर भी मैं कर्म करता हूं”-यह जो अपना उदाहरण मुख्य सिद्धान्त के समर्थन में दिया है, उसका मेल भी इस पक्ष में अच्छा नहीं जमता। इसलिये “तस्य कार्य न विद्यते” वाक्य में ‘कार्य न विद्यते’ शब्दों को मुख्य न मान कर ‘तस्य’ शब्द को ही प्रधान मानना चाहिये; और ऐसा करने से “तस्मादसक्त: सततं कार्य कर्म समाचर” का अर्थ यही करना पड़ता है कि "तू ज्ञानी है, इसलिये यह सच है, कि तुझे अपने स्वार्थ के लिये कर्म अनावश्यक है; परन्तु स्वयं तेरे लिये कर्म अनावश्यक है इसी लिये अब तू इन कर्मों को, जो शास्त्र से प्राप्त हुए हैं ‘मुझे आवश्यक नहीं’ इस बुद्धि से अर्थात निष्काम बुद्धि से, कर।" थोडे़ में यह अनुमान निकलता है, कि कर्म छोड़ने का यह कारण नहीं हो सकता कि ‘किन्तु कर्म अपरिहार्य है इस कारण, शास्त्र से प्राप्त अपरिहार्य कर्मों को, स्वार्थ-त्याग बुद्धि से करते ही रहना चाहिये। यही गीता का कथन है और यदि प्रकरण की समता की दृष्टि से देखें, तो भी यही अर्थ लेना पड़ता है। कर्म-योग, इन दोनों में जो बड़ा अन्तर है, वह यही है। संन्यास पक्षवाले कहते हैं कि “तुझे कुछ कर्तव्य शेष नहीं बचा है, इससे तू कुछ भी न कर;” और गीता (अर्थात कर्मयोग) का कथन है कि “तुझे कुछ कर्तव्य शेष नहीं बचा है, इसलिये अब तुझे जो कुछ करना है वह स्वार्थ-संबंधी वासना छोड़ कर अनासक्त बुद्धि से कर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज