गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
आठवां प्रकरण
सांख्यों के इन सिद्धान्तों का वर्णन पिछले प्रकरण में किया जा चुका है कि यद्यपि मूल में ‘पुरुष’ अकर्ता है, तथापि प्रकृति के साथ उसका संयोग होने पर सजीव सृष्टि का आरंभ होता है; और, ‘‘मैं प्रकृति से भिन्न हूँ’’ यह ज्ञान हो जाने पर, पुरुष का प्रकृति से संयोग टूट जाता है तथा वह मुक्त हो जाता है; यदि ऐसा न हो तो जन्म-मरण के चक्कर में उसे घूमना पड़ता है। परन्तु इस बात का विवेचन नहीं किया गया कि जिस ‘पुरुष’ की मृत्यु प्रकृति और ‘पुरुष’ की भिन्नता का ज्ञान हुए बिना ही हो जाती है, उसको नये नये जन्म कैसे प्राप्त होते हैं। अतएव यहाँ इसी विषय का विवेचन करना कुछ आवश्यक जान पड़ता है। यह स्पष्ट है कि, जो मनुष्य बिना ज्ञान प्राप्त किये ही मर जाता है उसका आत्मा प्रकृति के चक्र से सदा के लिये छूट नहीं सकता। क्योंकि यदि ऐसा हो, तो ज्ञान अथवा पाप-पुण्य का कुछ भी महत्त्व नहीं रह जायेगा; और फिर, चार्वाक के मतानुसार यही कहना पड़ेगा कि, मृत्यु के बाद हर एक मनुष्य प्रकृति के फंदे से छूट जाता है अर्थात वह मोक्ष पा जाता है। अच्छा; यदि यह कहें कि मृत्यु के बाद केवल आत्मा अर्थात पुरुष बच जाता है और वही स्वयं नये नये जन्म लिया करता है, तो यह मूलभूत सिद्धान्त- कि पुरुष अकर्ता और उदासीन है और सब कर्तृत्त्व प्रकृति ही का है-मिथ्या प्रतीत होने लगता है। इसके सिवा, जब हम यह मानते हैं कि, आत्मा स्वयं ही नये नये जन्म लिया करता है, तब यह उसका गुण या धर्म हो जाता है; और, तब तो, ऐसी अनवस्था प्राप्त हो जाती है, कि जन्म -मरण के आवागमन से कभी छूट ही नहीं सकता। इसलिये,यह सिद्ध होता है कि यदि बिना ज्ञान प्राप्त किये कोई मनुष्य मर जाय, तो भी आगे नया जन्म प्राप्त करा देने के लिये उसकी आत्मा से प्रकृति का संबंध अवश्य रहना ही चाहिये। मृत्यु के बाद स्थूल देह का नाश हो जाया करता है इसलिये यह प्रगट है कि,अब उक्त संबध स्थूल महाभूतात्मक प्रकृति के साथ नहीं रह सकता। परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि प्रकृति केवल स्थूल पंच-महाभूतों ही से बनी है। प्रकृति से कुल तेईस तत्त्व उत्पन्न होते हैं; और, स्थूल पंचमहाभूत, उन तेईस तत्त्वों में से, अंतिम पाँच हैं। इन अंतिम पाँच तत्त्वो (स्थूलपंचमहाभूतों) को तेईस तत्त्वों में से अलग करने पर 18 तत्त्व शेष रहते हैं। अतएव, अब यह कहना चाहिये कि,जो पुरष बिना ज्ञान प्राप्त किये ही मर जाता है, वह यद्यपि पंचमहाभूतात्मक स्थूल शरीर से अर्थात अंतिम पांच तत्त्वों से छूट जाता है, तथापि इस प्रकार की मृत्यु से प्रकृति के अन्य 18 तत्त्वों के साथ उसका संबंध कभी छूट नहीं सकता। वे अठारह तत्त्व ये हैं:- महान ‘‘बुद्धि’’, अहंकार, मन, दस इन्द्रियां और पांच तन्मात्राएं [1]। ये सब तत्त्व सूक्ष्म हैं। अतएव इन तत्त्वों के साथ पुरुष का संयोग स्थिर होकर जो शरीर बनता है उसे स्थूल-शरीर के उलटा सूक्ष्म अथवा लिंग शरीर कहते हैं [2]। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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