गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 21

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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इस रसबुद्धि को दूर करने के लिये क्या करना चाहिये भगवन्?
कर्मयोगी साधक सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके मेरे परायण होकर बैठे अर्थात् मेरे भरोसे निश्चिन्त हो जाय। इस तरह जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि प्रतिष्ठित है।।61।।

आपके परायण न होनेसे क्या होगा?
मेरे परायण न होने से विषयों (भोगों) का चिन्तन होगा।

विषयों के चिन्तन से क्या होगा?
मनुष्य की उन विषयों में आसक्ति हो जायगी।

आसक्ति होने से क्या होगा?
उन विषयों (भोगों) को प्राप्त करने की कामना पैदा हो जायगी।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 7 67
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