गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 20

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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वह स्थितप्रज्ञ बैठता कैसे है भगवन्?
जैसे कछुआ अपने चारों पैर, गरदर और पूँछ-इन छहों अंगों को समेटकर बैठता है, ऐसे ही जिस समय वह कर्मयोगी सम्पूर्ण इन्द्रियों और मन को अपने-अपने विषयों में समेट लेता है, हटा लेता है, उस समय उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है।।58।।

इन्द्रियों को समेटने की वास्तविक पहचान क्या है?
इन्द्रियों को अपने विषयों से हटाने वाले देहाभिमानी मनुष्य के भी विषय तो निवृत्त हो जाते हैं, पर रसबुद्धि (सुख-भोग-बुद्धि) निवृत्त नहीं होती। परन्तु परमात्मा की प्राप्ति होने से इस स्थितप्रज्ञ मनुष्य की रसबुद्धि भी निवृत्त हो जाती है।।59।।

रसबुद्धि रहने से क्या हानि होती है?
हे कुन्तीनन्दन! रसबुद्धि रहने से साधन परायण विवेकी मनुष्य की भी प्रमथनशील इन्द्रियाँ उसके मन को जबर्दस्ती विषयों की तरफ खींच ले जाती हैं।।60।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
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अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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