गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 18

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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अगर योग (समता) में स्थित होकर कर्म न करूँ, तो?
इस समता के बिना सकाम कर्म अत्यन्त ही निकृष्ट हैं। अतः हे धनन्जय! तू समबुद्धि का ही आश्रय ले; क्योंकि कर्मफल की इच्छा करने वाले कृपण हैं अर्थात् कर्मफल के गुलाम हैं।।49।।

कर्मफल की इच्छा वाले कृपण हैं, तो फिर श्रेष्ठ कौन है?
समबुद्धि से युक्त मनुष्य श्रेष्ठ है। समबुद्धि से युक्त मनुष्य इस जीवित अवस्था में ही पाप-पुण्य से रहित हो जाता है। इसलिये तू समता में ही स्थित हो जा; क्योंकि कर्मों में समता ही कुशलता है।।50।।

समबुद्धि का क्या परिणाम होगा भगवन्?
समता से युक्त मनीषी कर्मजन्य फल का त्याग करके और जन्मरूप बन्धन से रहित होकर निर्विकार पद को प्राप्त हो जाते हैं।।51।।

यह मैं कब समझूँ कि मैंने कर्मजन्य फल का त्याग कर दिया?
जब तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को तर जायगी, तब तेरे को सुने हुए और सुनने में आने वाले (भुक्त और अभुक्त) भोगों से वैराग्य हो जायगा।।52।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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