गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 137

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

अठारहवाँ अध्याय

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बस, इतने ही कर्म करने हैं क्या?
हे पार्थ! अभी कहे हुए यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा इनके सिवाय दूसरे भी शास्त्रविहित कर्मों को आसक्ति और फलेच्छा का त्याग करके चाहिये- यही मेरा निश्चित किया हुआ उत्तम मत है।।6।।

जो तीन तरह का त्याग कहा गया है, उसका क्या स्वरूप है भगवन्?
नियत कर्मों का त्याग करना किसी के लिये भी उचित नहीं है[1]। मोह के कारण इनका त्याग करना तामस त्याग है।।7।।

राजस त्याग का क्या स्वरूप है?
कर्तव्यकर्म करने में दुःख ही है- ऐसा समझकर शारीरिक क्लेश के भय से कर्मों का त्याग करना राजसत्याग है। ऐसा त्याग करने वाले को त्याग का फल-शान्ति नहीं मिलती।।8।।

सात्त्विक त्याग का क्या स्वरूप है?
हे अर्जुन! नियत कर्म करना मनुष्य का आवश्यक कर्तव्य है- ऐसा समझकर कर्मों की आसक्ति और फल की इच्छा का त्याग करके नियत कर्मों को करना सात्त्विक त्याग है।।9।।

त्याग करने वाला मनुष्य कैसा होता है भगवन्?
वह सकाम और निषिद्ध कर्मों का त्याग तो करता है, पर द्वेषपूर्वक नहीं और शास्त्र-नियत कर्तव्य-कर्मों का आचरण तो करता है? पर रागपूर्वक नहीं। ऐसा बुद्धिमान् त्यागी मनुष्य सन्देहरहित होकर अपने स्वरूप में स्थित रहता है।।10।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. विहित कर्म और नियत कर्म में क्या अन्तर है? शास्त्रों ने जिन कर्मों को करने की आज्ञा दी है वे सभी ‘विहित कर्म’ कहलाते हैं। उन सम्पूर्ण विहित कर्मों का पालन एक व्यक्ति कर ही नहीं सकता; क्योंकि शास्त्रों में सम्पूर्ण वारों तथा तिथियों के व्रत का विधान आता है। यदि एक ही मनुष्य सब वारों में या सब तिथियों में व्रत करेगा तो फिर वह भोजन कब करेगा? इससे यह सिद्ध हुआ कि मनुष्य के लिये सभी विहित कर्म लागू नहीं होते। परन्तु उन विहित कर्मों में भी वर्ण, आश्रम और परिस्थिति के अनुसार जिसके लिये जो कर्तव्य आवश्यक होता है, उसके लिये वह ‘नियत कर्म’ है। जैसे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-चारों वर्णों में जिस-जिस वर्ण के लिये जीविका और शरीर-निर्वाह सम्बन्धी जितने भी नियम हैं, उस-उस वर्ण के लिये वे सभी ‘नियत कर्म’ है।

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