गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 133

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सत्रहवाँ अध्याय

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वाणी का तप कैसे होता है?
उद्वेग न करने वाले, सत्य, प्रिय और हितकारक वचन बोलना; स्वाध्याय करना और अभ्यास (नाम-जप आदि) करना-यह वाणी का तप है।।15।।

मन का तप कैसे होता है?
मन की प्रसन्नता, सौम्य भाव, मननशीलता, मन का निग्रह और भावों की शुद्धि-यह मन का तप है।।16।।

उपर्युक्त तीन प्रकार का तप यदि परम श्रद्धा से युक्त फलेच्छारहित मनुष्यों के द्वारा किया जाता है तो वह तप सात्त्विक कहलाता है।।17।।

राजस तप क्या होता है भगवन्?
जो तप अपने सत्कार, मान और पूजा के लिये अथवा दूसरों को दिखाने के भाव से किया जाता है, वह इस लोक में अनिश्चित और नाशवान फल देने वाला तप राजस होता है।।18।।

तामस तप क्या होता है?
जो तप मूढ़तापूर्वक हठ से अपने को पीड़ा देकर अथवा दूसरों को कष्ट देने के लिये किया जाता है, वह तप तामस होता है।।19।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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