गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 132

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सत्रहवाँ अध्याय

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अभी आपने यज्ञ, तप और दान के भी तीन-तीन भेद सुनने की आज्ञा दी थी[1]। अतः अब यह बताइये कि यज्ञ तीन प्रकार का कैसे होता है?
यज्ञ करना कर्तव्य है-इस तरह मन को समाधान करे फलेच्छारहित मनुष्यों के द्वारा शास्त्रविधि के अनुसार जो यज्ञ किया जाता है, वह सात्त्विक होता है।।11।।

राजस यज्ञ कैसे होता है भगवन्?
हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! जो यज्ञ फल की इच्छा से अर्थात् अपने स्वार्थ के लिये किया जाय अथवा केवल लोगों को दिखाने के लिये किया जाय, उसको तू राजस समझ।।12।।

तामस यज्ञ कैसे होता है?
जो यज्ञ शास्त्रविधि से हीन, अन्न-दान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किया जाता है, वह तामस कहलाता है।।13।।

भगवन्! अब यह बताइये कि तप कितने प्रकार का होता है?
तप तीन प्रकार का होता है- शरीर का, वाणी का और मन का। देवता, ब्राह्मण, गुरुजन और जीवन्मुक्त महापुरुषों का पूजन करना; जल, मिट्टी आदि से शरीर को पवित्र रखना, शारीरिक क्रियाओं को सीधी-सरल रखना अर्थात् ऐंठ-अकड़ न रखनाः ब्रह्मचर्य का पालन करना और शरीर से किसी को भी किसी तरह का कष्ट न देना-यह शरीर का तप है।।14।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. पहले यजन-पूजन और भोजन के द्वारा जो श्रद्धा की पहचान बतायी, उससे शास्त्रविधि का अज्ञतापूर्वक त्याग करने वालों की तो पहचान हो जाती है, पर जो मनुष्य शास्त्रविधि के अनुसार यज्ञ आदि शुभ कर्म करते हैं, उनकी पहचान कैसे हो- यह बताने के लिये भगवान् ने यज्ञ, तप और दान के तीन-तीन भेदों को सुनने की आज्ञा दी है।

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