गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 124

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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अनधिकारी कौन होता है भगवन्?
आसुरी सम्पत्तिवाला[1]

आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्य के क्या लक्षण होते हैं?
वे इस प्रकार है-

1. दम्भ (दिखावटीपन) करना।

2. घमण्ड करना अर्थात् ममतावाली चीजों को लेकर अपने में बड़प्पन का अनुभव करना।

3. अहंतावाली चीजों को लेकर अभिमान करना।

4. क्रोध करना।

5. मन, वाणी, बर्ताव आदि में कठोरता रखना।

6. सत्-असत्, कर्तव्य-अकर्तव्य आदि के ज्ञान (विवेक) को महत्त्व न देना।

हे पृथानन्दन! ये सभी आसुरी सम्पत्ति को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं अर्थात् इन लक्षणोंवाला मनुष्य प्रायः मेरी भक्ति का अधिकारी नहीं होता।।4।।

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अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. ‘असु’ नाम प्राणों का है। उन प्राणों में ही जो रमण करना चाहते हैं, प्राणों को ही रखना चाहते हैं, उनको ‘असुर’ कहते हैं। तात्पर्य है कि शरीर के साथ एकता मानकर ‘मैं कभी मरूँ नहीं, सदा जीता रहूँ और सुख भोगता रहूँ’- ऐसी इच्छावाले मनुष्य ‘असुर’ हैं। उन असुरों की जो सम्पत्ति (लक्षण) है, वह आसुरी सम्पत्ति कहलाती है।

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