गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
सोलहवाँ अध्याय
6. अपने कर्तव्य का पालन करना। 7. शास्त्रों के सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतारना। 8. अपने कर्तव्य का पालन करते समय जो कष्ट आये, उसको प्रसन्नतापूर्वक सहना। 9. तन-मन वाणी की सरलता। 10. तन-मन-वाणी से किसी भी प्राणी को कभी किन्चिन्मात्र भी कष्ट न पहुँचाना। 11. जैसा देखा, सुना और समझा, वैसा-का-वैसा प्रिय शब्दों में कह देना। 12. मेरा स्वरूप समझकर किसी पर कभी क्रोध न करना। 13. सांसारिक कामनाओं का त्याग करना। 14. अन्तःकरण में राग-द्वेषजनित हलचल न होना। 15. चुगली न करना। 16. सम्पूर्ण प्राणियों पर दया का भाव होना। 17. सांसारिक विषयों में न ललचाना। |