गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 113

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौदहवाँ अध्याय

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गुणों के तात्कालिक बढ़ने पर यदि कोई मनुष्य मर जाय, तो उसकी क्या गति होती है?
सत्त्वगुण के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्य पुण्यात्माओं द्वारा प्राप्त करने योग्य निर्मल (उत्तम) लोकों में जाता है, रजोगुण बढ़ने पर मरने वाला मनुष्ययोनि में जन्म लेता है और तमोगुण के बढ़ने पर मरने वाला पशु, पक्षी आदि मूढ़योनियों में जन्म लेता है।।14-15।।

इन गुणों से ऐसी गतियाँ क्यों होती हैं भगवन्?
कारण कि गुणों की वृत्तियाँ जैसे होती हैं, वैसे ही कर्म होते हैं। इसलिये सात्त्विक कर्म का फल निर्मल होता है, राजस कर्म का फल दुःख होता है और तामस कर्म का फल अज्ञान (मूढ़ता) होता है। तात्पर्य है कि जैसे सात्त्विक आदि गुणों की वृत्तियों का फल होता है, ऐसे ही सात्त्विक आदि कर्मों का भी फल होता है।।16।।

वृत्तियों और कर्मों के मूल में क्या है?
तीनों गुण हैं। सत्त्वगुण से ज्ञान पैदा होता है, रजोगुण से लोभ पैदा होता है और तमोगुण से प्रमाद, मोह तथा अज्ञान पैदा होता है।।17।।

इन तीनों गुणों में स्थित रहने वालों की क्या गति होती है भगवन्?
सत्त्वगुण में स्थित रहने वाले स्वर्गादि ऊँचे लोकों में जाते हैं; रजोगुण में स्थित रहने वालों का मनुष्यलोक में जन्म होता है और निन्दनीय तमोगुण में स्थित रहने वाले नरकों आदि में जाते हैं।।18।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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