गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 112

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौदहवाँ अध्याय

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तीनों गुणों में से एक-एक गुण मनुष्य पर अपना अधिकार कैसे जमाता है भगवन्?
हे भरतवंशी अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण बढ़ता है, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण बढ़ता है तथा सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ता है।।10।।

बढ़े हुए सत्त्वगुण के क्या लक्षण होते हैं?
जब इस मनुष्य शरीर में सम्पूर्ण इन्द्रियों और अन्तःकरण में स्वच्छता और जानने की शक्ति विकसित होती है, तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा है।।11।।

बढ़े हुए रजोगुण के क्या लक्षण होते हैं भगवन्?
हे भरतवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! जब अन्तःकरण में धन आदि का लोभ क्रिया करने की प्रवृत्ति, भोग और संग्रह के उद्देश्य से नये-नये कर्मों का आरम्भ करना, अशान्ति, स्पृहा आदि की वृत्तियाँ बढ़ती हैं, तब जानना चाहिये कि रजोगुण बढ़ा है।।12।।

बढ़े हुए तमोगुण के क्या लक्षण होते हैं?
हे कुरुनन्दन! जब इन्द्रियों और अन्तःकरण में स्वच्छता (समझने की शक्ति) नहीं रहती, किसी कार्य को करने का मन नहीं करता, मनुष्य करनेलायक काम को नहीं करता तथा न करनेलायक काम में लग जाता है, अन्तःकरण में मोह छाया रहता है, तब (ऐसी वृत्तियों के बढ़ने पर) समझना चाहिये कि तमोगुण बढ़ा है।।13।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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