गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 107

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तेरहवाँ अध्याय

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जब ये दोनों अनादि हैं तो फिर ये गुण और विकार किससे पैदा हुए?
गुण और विकार प्रकृति से पैदा होते हैं। इसके सिवाय कार्य, करण और कर्तापन में भी प्रकृति ही हेतु होती है।

पुरुष किसमें हेतु होता है महाराज?
पुरुष तो सुख-दुःख के भोक्तापन में हेतु होता है।।19-20।।

पुरुष भोक्तापन में हेतु कब बनता है?
प्रकृति में स्थित होने से, उसके साथ अपना सम्बन्ध मानने से ही पुरुष गुणों का भोक्ता बनता है और गुणों का संग होने से ही वह ऊँच-नीच योनियों में जन्म लेता है।

उस पुरुष का स्वरूप क्या है भगवन्?
वह पुरुष प्रकृति के कार्य शरीर के साथ सम्बन्ध रखने से ‘उपद्रष्टा’, उसके साथ मिलकर सम्मति देने से ‘अनुमन्ता’, अपने को उसका भरण-पोषण करने वाला मानने से ‘भर्ता’, उसके संग से सुख-दुःख भोगने से ‘भोक्ता’ और अपने को उसका मालिक मानने से ‘महेश्वर’ बन जाता है। परन्तु स्वरूप से वह पुरुष ‘परमात्मा’ कहा जाता है। वह इस शरीर में रहता हुआ भी वास्तव में शरीर के सम्बन्ध से रहित ही है।।22।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
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अध्याय 4 44
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अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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