गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
तेरहवाँ अध्याय
4. क्षमा का भाव। 5. शरीर, मन और वाणी की सरलता। 6. ज्ञानप्राप्ति के लिये गुरु के पास जाकर उनकी सेवा आदि करना। 7. शरीर और अन्तःकरण की शुद्धि। 8. अपने लक्ष्य से विचलित न होना। 9. मन को वश में करना। 10. इन्द्रियों के विषयों से वैराग्य होना। 11. अहंकार-रहित होना। 12. वैराग्य के लिये जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था और रोगों में दुःखरूप दोषों के मूल कारण को देखना। 13. आसक्ति-रहित होना। 14. स्त्री, पुत्र, घर आदि में तल्लीन न होना |