गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 103

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तेरहवाँ अध्याय

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4. क्षमा का भाव।

5. शरीर, मन और वाणी की सरलता।

6. ज्ञानप्राप्ति के लिये गुरु के पास जाकर उनकी सेवा आदि करना।

7. शरीर और अन्तःकरण की शुद्धि।

8. अपने लक्ष्य से विचलित न होना।

9. मन को वश में करना।

10. इन्द्रियों के विषयों से वैराग्य होना।

11. अहंकार-रहित होना।

12. वैराग्य के लिये जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था और रोगों में दुःखरूप दोषों के मूल कारण को देखना।

13. आसक्ति-रहित होना।

14. स्त्री, पुत्र, घर आदि में तल्लीन न होना

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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