गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 98

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


निराशीर्यतचित्‍तात्‍मा त्‍यक्‍तसर्वपरिग्रह:।
शारीरं केवल कर्म कुर्वन्‍नाप्‍नोति किल्बिषम्।।21।।

जो आशारहित है, जिसका मन अपने वश में है, जिसने सारा संग्रह छोड़ दिया है और जिसका शरीर भर ही कर्म करता है, वह करते हुए भी दोषी नहीं होता।

टिप्‍पणी- अभिमानपूर्वक किया हुआ कुल कर्म चाहे जैसा सात्त्विक होने पर भी बंधन करने वाला है। वह जब ईश्वरार्पण बुद्धि से, बिना अभिमान के होता है, तब बंधनरहित बनता है। जिसका ʻमैं̕ शून्‍यता को प्राप्‍त हो गया है, उसका शरीर भर ही कर्म करता है। सोते हुए मनुष्‍य का शरीर भर ही कर्म करता है, यह कहा जा सकता है। जो कैदी विवश होकर अनिच्‍छा से हल चलाता है, उसका शरीर ही काम करता है। जो अपनी इच्‍छा से ईश्वर का कैदी बना है, उसका भी शरीर भर ही काम करता है। खुद तो शून्‍य बन गया है, प्रेरक ईश्वर है।

यदृच्‍छालाभसंतुष्‍टो द्वन्‍द्वातीतो विमत्‍सर:।
सम: सिद्धावसिद्धौ च कृत्‍वापि न निबध्‍यते।।22।।

जो यथालाभ से संतुष्‍ट रहता है, जो सुख-दु:खादि द्वंद्वों से मुक्‍त हो गया है, जो द्वेषरहित हो गया है, जो सफलता, निष्‍फलता में तटस्‍थ है, वह कर्म करते हुए भी बंधन में नहीं पड़ता है।

गतसङ्गस्‍य मुक्‍तस्‍य ज्ञानावस्थितचेतस:।
यज्ञायाचरत: कर्म समग्रं प्रविलीयते।।23।।

जो आसक्तिरहित है, जिसका चित्त ज्ञानमय है, जो मुक्‍त है और जो यज्ञार्थ ही कर्म करने वाला है, उसके सारे कर्म लय हो जाते हैं।

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्र ह्माग्‍नों ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मवै तेन गन्‍तव्‍यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।24।।

यज्ञ में अर्पण ब्रह्म है, हवन की वस्‍तु हवि ब्रह्म है, ब्रह्म रूपी अग्नि में हवन करने वाला भी ब्रह्म है; इस प्रकार कर्म के साथ जिसने ब्रह्म का मेल साधा है वह ब्रह्म को ही पाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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