गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। जब सब प्राणी सोते रहते हैं तब संयमी जागता रहता है। जब लोग जागते रहते हैं तब ज्ञानवान मुनि सोता रहता है। टिप्पणी- भोगी मनुष्य रात के बारह-एक बजे तक नाच, रंग, खानपान आदि में अपना समय बिताते हैं और फिर सवेरे-सात आठ बजे तक सोते हैं। संयमी रात के सात-आठ बजे सोकर मध्यरात्रि में उठकर ईश्वर का ध्यान करते हैं। इसके सिवा भोगी संसार का प्रपंच बढ़ाता है, और ईश्वर को भूलता है, उधर संयमी सांसारिक प्रपंचों से बेखबर रहता है और ईश्वर का साक्षात्कार करता है। इस प्रकार दोनों का पंथ न्यारा है। यह इस श्लोक में भगवान ने बतलाया है। आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं नदियों के प्रवेश से भरता रहने पर भी जैसे समुद्र अचल रहता है, वैसे ही जिस मनुष्य में संसार के भोग शांत हो जाते हैं वही शांति प्राप्त करता है, न कि कामना वाला मनुष्य। विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह:। सब कामनाओं का त्याग करके जो मनुष्य इच्छा, ममता और अहंकार रहित होकर विचरता है, वही शांति पाता है। एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति। हे पार्थ! ईश्वर को पहचाने वाले की स्थिति ऐसी होती है। उसे पाने पर फिर वह मोह के वश नहीं होता और यदि मृत्युकाल में भी ऐसी ही स्थिति टिके तो वह ब्रह्मनिर्वाण पाता है। ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषद अर्थात ब्रह्मविद्यान्त- र्गत योगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुनसंवाद का ʻसांख्य-योगʼ नामक दूसरा अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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