गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। यदि तू मारा जायगा तो तुझे स्वर्ग मिलेगा। यदि तू जीतेगा तो पृथ्वी भोगेगा। अत: हे कौंतेय! लड़ने का निश्चय करके तू खड़ा हो। 37 टिप्पणी- इस प्रकार भगवान ने आत्मा का नित्यत्व और देह का अनित्यत्व बतलाया। फिर यह भी बतलाया कि अनायास- प्राप्त युद्ध करने में क्षत्रिय को धर्म की बाधा नहीं होती। इस प्रकार 31 वेंं श्लोक से भगवान ने परमार्थ के साथ उपयोग का मेल मिलाया है। इतना कहकर फिर भगवान गीता के प्रधान उपदेश का दिग्दर्शन एक श्लोक में कराते हैं। सुखदु:खे समे कृत्वा लाभालाभो जयाजयौ। सुख और दु:ख, लाभ और हानि, जय और पराजय को समान समझकर युद्ध के लिए तैयार हो। ऐसा करने से तुझे पाप नहीं लगेगा। 38 एषा तेऽभिहिता सांख्ये बुद्धियोगे त्विमां श्रृणु। मैंने तुझे सांख्यसिद्धांत (तर्कवाद) के अनुसार तेरा यह कर्त्तव्य बतलाया। अब योगवाद के अनुसार समझाता हूँ सो सुन। इसका आश्रय लेने से तू कर्म-बंधन को तोड़ सकेगा। 39 नेहाभिकमनाशोऽस्ति प्रत्यावायो न विद्यते। इसमें आरंभ का नाश नहीं होता, उल्टा नतीजा नहीं निकलता। इस धर्म का थोड़ा-सा पालन भी महाभय से बचा लेता है। 40 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज