गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
अथ चेत्वमिमं धर्म्य संग्रामं न करिष्यसि। यदि तू धर्म प्राप्त युद्ध नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीतिं को खोकर पाप को प्राप्त होगा। 33 अकतिं चापि भूतानि सब लोग तेरी निंदा निरंतर किया करेंगे और सम्मानित पुरुष के लिए अपकीर्ति मरण से भी बुरी है। 34 भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा:। जिन महारथियों से तूने मान पाया है, वे तुझे भय के कारण रण से भागा मानेंगे और तुझे तुच्छ समझेंगे। अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिता:। और तेरे शत्रु तेरे बल की निंदा करते हुए बहुत-सी न कहने योग्य बातें कहेंगे, इससे अधिक दुखदायी और क्या हो सकता है? 36 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज