अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्ययोग
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।25।।
फिर, यह इंद्रिय और मन के लिए अगम्य है, विकार रहित
कहा गया है, इसलिए इसे वैसा जानकर तुझे शोक करना उचित
नहीं है। 25
अथ चैनं नित्यजातं नित्यं दा मन्यसे मृतम।
तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि।।26।।
अथवा जो तू इसे नित्य जन्मने और मरने वाला माने तो
भी, हे महाबाहो ! तुझे शोक करना उचित नहीं है। 26
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्धुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।27।।
जन्मे हुए के लिए मृत्यु और मरे हुए के लिए जन्म अनिवार्य
है। अत: जो अनिवार्य है, उसका शोक करना उचित नहीं है। 27
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधानान्येव तत्र का परिवेदना।।28।।
हे भारत! भूतमात्र की जन्म के पहले की और मृत्यु के
पीछे की अवस्था नहीं जा सकती, वह अव्यक्त है, बीच की
ही स्थिति व्यक्त होती है। इसमें चिंता का क्या कारण है? 28
टिप्पणी- भूत अर्थात स्थावर-जंगम सृष्टि।
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