गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुन विषाद योग
निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीतिस्याज्जनार्दन। हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर मुझे क्या आनंद होगा? इन आततायियों को भी मारकर हमें पाप ही लगेगा। तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्। इससे, हे माधव! यह उचित नहीं कि अपने ही बांधव धृतराष्ट्र के पुत्रों को हम मारें। स्वजन का ही मारकर कैसे सुखी हो सकते हैं?̕̕ यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस:। लोभ से जिनके चित्त मलिन हो गये हैं, वे कुलनाश से होने वाले दोष को और मित्र-द्रोह के पाप को भले ही न देख सकें, परंतु हे जनार्दन! कुल नाश से होने वाले दोष को समझने वाले हम लोग इस पाप से क्यों न बचना जानें? कुल के नाश से सनातन कुलधर्मों का नाश होता है और धर्म का नाश होने से अधर्म समूचे कुल को डुबा देता है। 40 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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