गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 61

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुन विषाद योग


निहत्‍य धार्तराष्‍ट्रान्‍न: का प्रीतिस्‍याज्‍जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्‍मान्‍हत्‍वैतानाततायिन:।।36।।

हे जनार्दन! धृतराष्‍ट्र के पुत्रों को मारकर मुझे क्‍या आनंद होगा? इन आततायियों को भी मारकर हमें पाप ही लगेगा।

तस्‍मान्‍नार्हा वयं हन्‍तुं धार्तराष्‍ट्रान्‍स्‍वबान्‍धवान्।
स्‍वजनं कि कथं हत्‍वा सुखिन: स्‍याम माधव।।37।।

इससे, हे माधव! यह उचित नहीं कि अपने ही बांधव धृतराष्‍ट्र के पुत्रों को हम मारें। स्‍वजन का ही मारकर कैसे सुखी हो सकते हैं?̕̕

यद्यप्‍येते न पश्‍यन्ति लोभोपहतचेतस:।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।38।।
कथं न ज्ञेयमस्‍माभि: पापादस्‍मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृंत दोषं प्रपश्‍यद् भिर्जनार्दन।।39।।

लोभ से जिनके चित्त मलिन हो गये हैं, वे कुलनाश से होने वाले दोष को और मित्र-द्रोह के पाप को भले ही न देख सकें, परंतु हे जनार्दन! कुल नाश से होने वाले दोष को समझने वाले हम लोग इस पाप से क्‍यों न बचना जानें?

 
कुलक्षये प्रणश्‍यन्ति कुलधर्मा: सनातना:।
धर्मे नष्‍टे कुलं कृत्‍स्‍नमधर्मोऽभिभवत्‍युत।।40।।

कुल के नाश से सनातन कुलधर्मों का नाश होता है और धर्म का नाश होने से अधर्म समूचे कुल को डुबा देता है। 40

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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