गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 60

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुन विषाद योग


निमित्तानि च पश्‍यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्‍यामि हत्‍वा स्‍वजनमाहवे।।31।।

इसके सिवा हे केशव! मैं तो विपरीत लक्षण देख रहा हूँ। युद्ध में स्‍वजनों के मारकर कुछ श्रेय नहीं देखता।

न काङक्षे विजयं कृष्‍ण न च राज्‍यं सुखानि च।
किं नो राज्‍येन गोविन्‍द किं भोगैजींवितेन वा।।32।।

उन्‍हें मारकर न मैं विजय चाहता, न राज्‍य और सुख चाहता; हे गोविन्‍द! मुझे राज्‍य का, भोग का या जीवन का क्‍या काम है?

येषामर्थे काङिक्षतं नो राज्‍यं भोगा: सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्‍त्‍यवत्‍या धनानि च।।33।।
आचार्या: पितर: पुत्रास्‍तथैव च पितामहा:।
मातुला: श्‍वशुरा: पौत्रा: श्‍याला: सम्‍बंधिनस्‍तथा।।34।।

जिनके लिए राज्‍य, भोग और सुख की हमने चाहना की वे, ये आचार्य, काका, पुत्र, पितामह, मामा, ससुर, पौत्र, साले और अन्‍य संबंधीजन जीवन और धन की आशा छोड़कर युद्ध के लिए खड़े हैं।

एतान्‍न हन्‍तुमिच्‍छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि खलो क्‍यराज्‍यस्‍य हेतो: किं नु महीकृते।।35।।

मुझे ये मार डालें अथवा मुझे तीनों लोक का राज्‍य मिले तो भी, हे मधुसूदन ! मैं उन्‍हें मारना नहीं चाहता। तो फिर एक जमीन के टुकड़े के लिए कैसे मारूं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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