गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुनविषाद योग
तत: शांखश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा:। फिर तो शंख नगारे, ढोल, मृदंग और रणसिंगे एक साथ ही बज उठे। यह नाद भयंकर था। तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ। इतने में सफेद घोड़ों वाले बड़े रथ पर बैठे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन ने दिव्य शंख बजाये। पांचजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजय:। श्रीकृष्ण ने पांचजन्य शंख बजाया। धनंजय अर्जुन ने देवदत्त शंख बजाया। भयंकर कर्मवाले भीम ने पौंड्र नामक महाशंख बजाया। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर:। कुंतीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनंतविजय नामक शंख बजाया और नकुल ने सुघोष तथा सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख बजाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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