गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 51

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना


इस विचार-श्रेणी के अनुसार मुझे ऐसा जान पड़ा है कि गीता की शिक्षा को व्‍यवहार में लाने वाले को अपने-आप सत्‍य और अहिंसा का पालन करना पड़ता है। फलासक्ति के बिना न तो मनुष्‍य को असत्‍य बोलने का लालच होता है, न हिंसा करने का। चाहे जिस हिंसा या असत्‍य के कार्य को हम लें, यह मालूम हो जायगा कि उसके पीछे परिणाम की इच्‍छा रहती है। गीता-काल के पहले भी अहिंसा परम धर्म रूप मानी जाती थी, पर गीता को तो अनासक्ति के सिद्धांत का प्रतिपादन करना था। दूसरे अध्‍याय में ही यह बात स्‍पष्‍ट हो जाती है।

परंतु यदि गीता की अहिंसा मान्‍य थी, अथवा अनासक्ति में अहिंसा अपने-आप आ ही जाती है, तो गीताकार ने भौतिक युद्ध को उदाहरण के रूप में भी क्‍यों लिया? गीता-युग में अहिंसा धर्म मानी जाने पर भी भौतिक युद्ध सर्वमान्‍य वस्‍तु होने के कारण गीताकार को ऐसे युद्ध का उदाहरण लेते संकोच नहीं हुआ और न होना चाहिए था।

परन्‍तु फलत्‍याग के महत्‍व का अंदाजा करते हुए गीताकार के मन में क्‍या विचार थे, उसने अहिंसा की मर्यादा कहाँ निश्चित की थी, इस पर हमें विचार करने की आवश्‍यकता नहीं रहती। कवि महत्‍व के सिद्धान्‍तों को संसार के सम्‍मुख उपस्थित करता है, इसके यह मानी नहीं होते कि वह सदा अपने उपस्थित किये हुए सिद्धान्‍तों को महत्‍वपूर्ण रूप से पहचानता है या पहचानने के बाद समूचे को भाषा में रख सकता है। इसमें काव्‍य की और कवि की महिमा है। कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्‍य का, उसी प्रकार महावाक्‍यों के अर्थ का विकास होता ही रहता है। भाषाओं के इतिहास में हमें मालूम होता है कि अनेक महान शब्‍दों के अर्थ नित्‍य-नये होते रहे हैं। यही बात गीता के अर्थ के संबंध में भी है। गीताकार ने स्‍वयं महान रूढ़ शब्‍दों के अर्थ का विस्‍तार किया है। गीता को ऊपरी दृष्टि से देखने पर भी यह बात मालूम हो जाती है। गीता-युग के पहले कदाचित यज्ञ में पशु-हिंसा मान्‍य रही हो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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