गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
प्रस्तावना
परंतु यदि गीता की अहिंसा मान्य थी, अथवा अनासक्ति में अहिंसा अपने-आप आ ही जाती है, तो गीताकार ने भौतिक युद्ध को उदाहरण के रूप में भी क्यों लिया? गीता-युग में अहिंसा धर्म मानी जाने पर भी भौतिक युद्ध सर्वमान्य वस्तु होने के कारण गीताकार को ऐसे युद्ध का उदाहरण लेते संकोच नहीं हुआ और न होना चाहिए था। परन्तु फलत्याग के महत्व का अंदाजा करते हुए गीताकार के मन में क्या विचार थे, उसने अहिंसा की मर्यादा कहाँ निश्चित की थी, इस पर हमें विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती। कवि महत्व के सिद्धान्तों को संसार के सम्मुख उपस्थित करता है, इसके यह मानी नहीं होते कि वह सदा अपने उपस्थित किये हुए सिद्धान्तों को महत्वपूर्ण रूप से पहचानता है या पहचानने के बाद समूचे को भाषा में रख सकता है। इसमें काव्य की और कवि की महिमा है। कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का, उसी प्रकार महावाक्यों के अर्थ का विकास होता ही रहता है। भाषाओं के इतिहास में हमें मालूम होता है कि अनेक महान शब्दों के अर्थ नित्य-नये होते रहे हैं। यही बात गीता के अर्थ के संबंध में भी है। गीताकार ने स्वयं महान रूढ़ शब्दों के अर्थ का विस्तार किया है। गीता को ऊपरी दृष्टि से देखने पर भी यह बात मालूम हो जाती है। गीता-युग के पहले कदाचित यज्ञ में पशु-हिंसा मान्य रही हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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