गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 47

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना


इस अभिलाषा में दूसरे गुजराती अनुवादों की अवहेलना नहीं है। उन सबका स्‍थान भले ही हो; पर उनके पीछे अनेक अनुवादकों का आचार- रूपी अनुभव का दावा हो, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। इस अनुवाद के पीछे अड़तीस वर्ष के आचार के प्रयत्‍न का दावा है। इसलिए मैं यह अवश्‍य चाहता हूँ कि प्रत्‍येक गुजराती भाई और बहन, जिन्‍हें धर्म को आचरण में लाने की इच्‍छा है, इसे पढ़े विचारें और इसमें से शक्ति प्राप्‍त करें।

इस अनुवाद में मेरे साथियों की मेहनत मौजूद है। मेरा संस्‍कृत-ज्ञान बहुत अधूरा होने के कारण शब्‍दार्थ पर मुझे पूरा विश्‍वास नहीं हो सकता था, अत: इतने भर के लिए इस अनुवाद को विनोबा, काका कालेलकर, महादेव देसाई और किशोरलाल मशरूवाला ने देख लिया है।

: 2 :

अब गीता के अर्थ पर आता हूँ। सन् 1888-89 में जब गीता प्रथम दर्शन हुआ तभी मुझे ऐसा लगा कि यह ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है, वरन् इसमें भौतिक युद्ध के वर्णन के बहाने प्रत्‍येक मनुष्‍य के हृदय के भीतर निरंतर होते रहने वाले द्वंद्व-युद्ध का ही वर्णन है। मानुषी योद्धओं की रचना हृदयगत युद्ध को रोचक बनाने के लिए गढ़ी हुई कल्‍पना है। यह प्राथमिक स्‍फुरण धर्म का और गीता का विशेष विचार करने के बाद पक्‍की हो गई। महाभारत पढ़ने के बाद यह विचार और भी दृढ़ हो गया। महाभारत-ग्रंथ को मैं आधुनिक अर्थ में इतिहास नहीं मानता। इसके प्रबल प्रमाण आदि पर्व में ही हैं। पात्रों की अमानुषी और अतिमानुषी उत्‍पत्ति का वर्णन करके व्‍यास भगवान ने राजा- प्रजा के इतिहास को मिटा दिया है। उसमें वर्णित पात्र मूल में ऐतिहासिक भले ही हों, परंतु महाभारत में तो उनका उपयोग व्‍यास भगवान ने केवल धर्म का दर्शन कराने के लिए ही किया है।

महाभारतकार ने भौतिक युद्ध की आवश्‍यकता नहीं, उसकी निरर्थकता सिद्ध की है। विजेता ने रुदन कराया है, पश्‍चात्ताप कराया है और दु:ख के सिवा और कुछ नहीं रहने दिया।

इस महाग्रंथ में गीता शिरोमणि रूप से विराजती है। उसका दूसरा अध्‍याय भौतिक युद्ध-व्‍यवहार सिखाने के बदले स्थितप्रद के लक्षण सिखाता है। स्थितप्रज्ञ का ऐहिक युद्ध के साथ कोई संबंध नहीं होता, यह बात उसके लक्षणों में से ही मुझे प्रतीत हुई है। साधारण पारिवारिक झगड़ों के औचित्‍य-अनौचित्‍य का निर्णय करने के लिए गीता-जैसी पुस्‍तक की रचना संभव नहीं है।

गीता के कृष्‍ण मूर्तिमान शुद्ध संपूर्ण ज्ञान है ! परंतु काल्‍पनिक है। यहां कृष्‍ण नाम के अवतारी पुरुष का निषेध नहीं है। केवल संपूर्ण कृष्‍ण काल्‍पनिक हैं, संपूर्णावतार का आरोपण पीछे से हुआ है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः