गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
अठारहवां अध्याय
अंत में संजय धृतराष्ट्र से कहता है- "जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं, जहाँ धनुर्धारी पार्थ हैं, वहाँ श्री है, विजय है, वैभव है और अविचल नीति है।" यहाँ कृष्ण को योगेश्वर विशेषण दिया गया है। इससे उसका शाश्वत अर्थ, शुद्ध अनुभव ज्ञान किया गया है और धनुर्धारी पार्थ कहकर यह बतलाया गया है कि जहाँ ऐसे अनुभव सिद्ध ज्ञान को अनुसरण करने वाली क्रिया है, वहाँ परम नीति की अवरोधनी मनोकामना सिद्ध होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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