गीता माता -महात्मा गांधी
14 : गीता जी
गीता-माता ने इसका उत्तर तो दिया ही है कि हमें पाप करने के लिए कौन प्रेरित करता है। काम और कोध हमसे पाप करवाते हैं। अपने पिछले स्मरणों से तुम सब इस बात को अनुभव कर सकोगे।
चि. धीरू[1], तेरा पत्र मिला। नया वर्ष तुझे फले और तू और अच्छा सेवक बने। गीता तूने कंठ कर ली, अब उसे हृदय में उतार। ऐसा करने के लिए तुझे उसके अर्थ समझने चाहिए। 'अनासक्ति योग' की प्रस्तावना दस-बीस पढ़ जा और फिर अर्थ समझने की कोशिश कर। उसे समझने के लिए संस्कृत का अभ्यास बढ़ा। जैसे भी बने, वैसे इसे पूरा कर। नये वर्ष का यही तेरा व्रत हो! 23 अप्रैल, 1931
हम सब लोग जब कभी बीमार पड़ते हैं, साधारणतया उसके पीछे न केवल आहार-सम्बन्धी त्रुटि ही होती है, अपितु हमारे मस्तिष्क का ठीक-ठीक काम न करना भी होता है। गीताकार ने स्पष्टतः इस चीज को देखा और साफ-साफ भाषा में संस्कार को इसकी रामबाण औषधि बताया। इसलिए जब कभी कोई चीज तुम्हारे मस्तिष्क को हैरान करती हो तो तुम्हें गीता की मुख्य शिक्षा पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और अपने बोझ को उतार फेंकना चाहिए। ‘बापूज़ लैटर्स टू मीरा’ 4 दिसंबर, 1630 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री धीरेन गांधी के नाम पत्र
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