गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 271

गीता माता -महात्मा गांधी

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14 : गीता जी


गीता के मुख्य सिद्धान्त से असंगत कोई बात चाहे जहाँ भी लिखी हुई हो, मेरा मन उसे शास्त्र नहीं मानता। मेरे रूढ़िग्रस्त मित्रों को आघात न लगे तो मैं अपना अर्थ और अधिक स्पष्ट करना चाहता हूँ। सदाचार के विश्वमान्य मूलतत्त्वों से असंगत किसी भी चीज को मैं शास्त्रप्रामाण्य में नहीं मानता। शास्त्रों का उद्देश्य इन मूलतत्त्वों को उखाड़ फेंकना नहीं, वरन् इन्हें टिकाये रखना है, और गीता मेरे लिए सम्पूर्ण है, इसका कारण यह है कि वह इन मूलतत्त्वों का समर्थन करती है। इतना ही नहीं, बल्कि वह किसी भी मूल्य पर इनसे चिपके रहने के लिए अचूक कारण बताती है।

‘महादेवभाईनी डायरी’,
भाग 2, पृष्ठ 460
17 नवंबर, 1932

इसलिए भगवद्गीता में एक ही जगह, जहाँ ‘शास्त्र’ शब्द आता है, वहाँ मैंने उसका अर्थ यह नहीं किया कि गीता के सिवा कोई अन्य ग्रंथ या विधि वाक्य, बल्कि इसका अर्थ किसी जीवित प्रमाण भूत व्यक्ति में मूर्तिमान होने वाला सदाचार है।

‘महादेवभाईनी डायरी’,
भाग 2, पृष्ठ 461
17 नवंबर, 1932

गीता जी के तीसरे अध्याय का पांचवां श्लोक बहुत ही चमत्कारी है। भौतिकशास्त्री बता चुके हैं कि इसमें बताया हुआ सिद्धान्त सर्वव्यापक है। इसका अर्थ यह है कि कोई आदमी एक क्षण भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। कर्म का अर्थ है गति और यह नियम जड़-चेतन सबके लिए लागू है। मनुष्य इस नियम पर निष्काम भाव से चलता है तो यही उसका ज्ञान और यही उसकी विशेषता है। इसी की पूर्ति में ईशोपनिषद् के दो मंत्र हैं। वे भी इतने ही चमत्कारी हैं।

‘महादेवभाईनी डायरी’,
पहला भाग, पृष्ठ 374
23 अगस्त, 1932

आश्रम की एक बहन ने लिखा है, ‘‘गीता की बजाय अन्य पुस्तकें पढ़ना मुझे ज्यादा अच्छा लगता है।’’

तूने तो ऐसी बात लिखी कि मुझे पकौडियां खाना अच्छा लगता है और रोटी अच्छी नहीं लगती। निरोगी का पेट पकौड़ियों से कभी भर नहीं सकता। वह तो रोटी ही मांगेगा। इसी तरह गीता को समझ। अन्तर्पट खुलने पर तो गीता अच्छी लगेगी ही। जब तक गीता अच्छी नहीं लगती तब तक यह समझना चाहिए कि कुछ कच्चापन है; लेकिन इसमें मुझ रसोइये का भी दोष तो है ही। मैंने जो गीता भेजी, वह कच्ची थी, इसलिए तुझे पची नहीं? अब क्या हो?

गीता कंठ करने में स्मरण-शक्ति का काम है, जो सरल है। गीता का अर्थ समझने में बुद्धि का काम है। यह कठिन है। इससे तुम्हें रस नहीं मिलता, किन्तु जब बुद्धि के काम में रस मिलने लगेगा तब अर्थ समझने की इच्छा जागेगी। इसलिए बुद्धि के विषयों में रस लेने लगो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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