गीता माता -महात्मा गांधी
13 : अहिंसा परमोधर्म:
यह बात उस समय नहीं थी। हमारे हृदयों में जो दिन-रात सत और असत के बीच सनातन संघर्ष चल रहा है महाभारतकार उसे इस कथानक द्वारा एक अमर काव्य के रुप में हमारे सामने प्रस्तुत करता है। वह बताता है कि यद्यपि अंत में तो सत्य ही की विजय होती है तो भी असत किस तरह सशक्त होकर अत्यन्त विवेकशील पुरुष को भी ‘किंकर्तव्य-विमूढ़’ बना देता है। महाभारत सदाचार का एक-मात्र मार्ग भी हमें बताता है। लेकिन भगवद्गीता का वास्तविक संदेश जो कुछ भी हो शांति-स्थापन आंदोलन के नेताओं के लिए तो गीता की शिक्षा नहीं, बाईबिल की शिक्षा महत्त्व रखती है, क्योंकि उसी को उन्होंने अपना आध्यात्मिक मार्ग-दर्शक बना रखा है। फिर बाइबिल का भी तो कई तरह से अर्थ लगाया जाता है। उन्हें बाइबिल का वह अर्थ स्वीकार नहीं है, जो इसके श्रद्धायुक्त अन्तः करण से पढ़ने पर मालूम होता है। असल में, सबसे महत्त्वपूर्ण चीज तो है युद्ध विरोधियों का अहिंसा अर्थात प्रेम-धर्म विषयक ज्ञान। अहिंसा का अर्थ बहुत व्यापक है। अंग्रेजी का ‘नान-वायलेन्स’ शब्द उसके लिए बिल्कुल अपर्याप्त है। ‘स्टेट्समैन’ के ये लेख युद्ध-विरोधियों के लिए एक खासी चुनौती ही हैं। मुझे दुःख है, इस आंदोलन के विषय में मुझे पूरी जानकारी नहीं है। युद्ध-विरोधियों के नज़दीक भले ही मेरे विचारों का विशेष महत्त्व न हो, पर जहाँ तक मुझे भीतरी बातों का पता है, कुछ लोग तो जरूर उसका ख्याल करेंगे क्योंकि वे भी अक्सर मुझसे पत्र-व्यवहार करते हैं और अब तो वे एक कदम और आगे बढ़ गये हैं क्योंकि उन्होंने रिचर्ड ग्रेग की अहिंसा की शक्ति नामक पुस्तक को लगभग अपनी पाठ्य-पुस्तक बना लिया है। लेखक[1] के शब्दों में यह पुस्तक अंहिसा के दावे का, जैसा कि मैं उसे समझा हूँ पाश्चात्य संसार की भाषा में प्रतिपादन है। इसलिए बगैर किसी प्रकार की दलील वगैरहा दिये, अगर मैं यहाँ अहिंसा की सफलता की कुछ शर्तें तथा अप्रकट अर्थ लिख दूँ तो शायद धृष्टता न होगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री ग्रेग
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