गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 268

गीता माता -महात्मा गांधी

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13 : अहिंसा परमोधर्म:


मनुष्य को अगर एक अमर प्राणी समझा जाये तो महाभारत उसका एक आध्यात्मिक इतिहास है और इसके वर्णन में एक ऐतिहासिक घटना का उसने उपयोग मात्र किया है, जो तत्कालीन छोटे-से जगत के लिए तो बड़ी महत्त्वपूर्ण थी, पर आजकल की दुनिया के लिए कोई भी महत्त्व नहीं रखती है। अनेक आधुनिक आविष्कारों के कारण आज तो यह सारा संसार हथेली पर रखे हुए आंवले समान मालूम होने लगा है। उसके किसी एक कोने में घटी हुई घटना का असर दूर-दूर तक सारे संसार में फैल जाता है।

यह बात उस समय नहीं थी। हमारे हृदयों में जो दिन-रात सत और असत के बीच सनातन संघर्ष चल रहा है महाभारतकार उसे इस कथानक द्वारा एक अमर काव्य के रुप में हमारे सामने प्रस्तुत करता है। वह बताता है कि यद्यपि अंत में तो सत्य ही की विजय होती है तो भी असत किस तरह सशक्त होकर अत्यन्त विवेकशील पुरुष को भी ‘किंकर्तव्य-विमूढ़’ बना देता है। महाभारत सदाचार का एक-मात्र मार्ग भी हमें बताता है।

लेकिन भगवद्गीता का वास्तविक संदेश जो कुछ भी हो शांति-स्थापन आंदोलन के नेताओं के लिए तो गीता की शिक्षा नहीं, बाईबिल की शिक्षा महत्त्व रखती है, क्योंकि उसी को उन्होंने अपना आध्यात्मिक मार्ग-दर्शक बना रखा है। फिर बाइबिल का भी तो कई तरह से अर्थ लगाया जाता है। उन्हें बाइबिल का वह अर्थ स्वीकार नहीं है, जो इसके श्रद्धायुक्त अन्तः करण से पढ़ने पर मालूम होता है।

असल में, सबसे महत्त्वपूर्ण चीज तो है युद्ध विरोधियों का अहिंसा अर्थात प्रेम-धर्म विषयक ज्ञान। अहिंसा का अर्थ बहुत व्यापक है। अंग्रेजी का ‘नान-वायलेन्स’ शब्द उसके लिए बिल्कुल अपर्याप्त है। ‘स्टेट्समैन’ के ये लेख युद्ध-विरोधियों के लिए एक खासी चुनौती ही हैं।

मुझे दुःख है, इस आंदोलन के विषय में मुझे पूरी जानकारी नहीं है। युद्ध-विरोधियों के नज़दीक भले ही मेरे विचारों का विशेष महत्त्व न हो, पर जहाँ तक मुझे भीतरी बातों का पता है, कुछ लोग तो जरूर उसका ख्याल करेंगे क्योंकि वे भी अक्सर मुझसे पत्र-व्यवहार करते हैं और अब तो वे एक कदम और आगे बढ़ गये हैं क्योंकि उन्होंने रिचर्ड ग्रेग की अहिंसा की शक्ति नामक पुस्तक को लगभग अपनी पाठ्य-पुस्तक बना लिया है। लेखक[1] के शब्दों में यह पुस्तक अंहिसा के दावे का, जैसा कि मैं उसे समझा हूँ पाश्चात्य संसार की भाषा में प्रतिपादन है। इसलिए बगैर किसी प्रकार की दलील वगैरहा दिये, अगर मैं यहाँ अहिंसा की सफलता की कुछ शर्तें तथा अप्रकट अर्थ लिख दूँ तो शायद धृष्टता न होगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री ग्रेग

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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