गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
आठवां अध्याय
ʻʻउत्पत्ति-लय करने वाला ब्रह्मा भी मेरा ही भाव है। वह अव्यक्त है, इंद्रियों से नहीं जाना जा सकता। इससे भी परे मेरा अन्य अव्यक्त स्वरूप है, जिसका कुछ वर्णन मैंने तुझसे किया है। उसे पाने वाला जन्म-मरण से छूट जाता है, क्योंकि इस स्वरूप के लिए रात-दिन वाला द्वंद्व नहीं है, यह केवल शांत अचल स्वरूप है। इसके दर्शन अनन्य भक्ति से ही होते हैं। इसी के आधार पर सारा जगत है और वह स्वरूप सर्वत्र व्याप्त है।" ʻʻकहते है कि उत्तरायण के शुक्ल पक्ष के दिनों में मरने- वाला उपर्युक्त प्रकार से स्मरण करता हुआ मुझे लगता है और दक्षिणायन में, कृष्ण पक्ष की रात्रि में, मृत्यु पाने वाले के पुनर्जन्म के चक्कर बाकी रह जाते हैं। इसका अर्थ यों किया जा सकता है कि उत्तरायण और शुक्लपक्ष यह निष्काम सेवा- मार्ग है और दक्षिणायन और कृष्णपक्ष स्वार्थमार्ग है। सेवा- मार्ग अर्थात ज्ञानमार्ग, स्वार्थमार्ग अर्थात अज्ञानमार्ग। ज्ञान- मार्ग से चलने वाले को मोक्ष है और अज्ञानमार्ग से चलने वाले को बंधन। इन दोनों मार्गों को जान लेने पर कौन मोह में रह- कर अज्ञानमार्ग को पसंद करेगा? इतना जानने पर मनुष्य- मात्र को सब पुण्य–फल छोड़कर, अनासक्त रहकर, कर्त्तव्य में परायण होकर, मैंने जो कहा है उत्तम स्थान पाने का ही प्रयत्न करना चाहिए।ʼʼ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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