गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 249

गीता माता -महात्मा गांधी

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4 : गीता-ध्यान


ज्ञानेश्वर महाराज ने निवृत्तिनाथ के जीते हुए उनका ध्यान धरा हो तो भले ही धरा हो; लेकिन इतना होने पर भी मेरी पक्की राय है कि वह हमारे नकल करने लायक नहीं है। जिसका ध्यान करना है, वह पूर्णता को पाया हुआ व्यक्ति होना चाहिए। जीवित व्यक्ति के लिए इस तरह का ख्याल करना बिल्कुल बेजा और गैरज़रूरी है। किन्तु यह हो सकता है कि ज्ञानेश्वर महाराज ने शरीरधारी निवृत्तिनाथ का ध्यान किया हो। मगर हम इस झगड़े में कहाँ पड़ें? और जीवित मूर्ति का ध्यान करने का सवाल उठता है तब कल्पना की मूर्ति की गुंजाइश नहीं रहती और इसका उल्लेख करके जबाब दिया हो तो इस जबाब से बुद्धि भ्रष्ट होना संभव है।

पहले अध्याय में जो नाम दिये हैं, वे सब नाम मेरी राय में व्यक्तिवाचक होने के बजाय गुणवाचक ज्यादा हैं। दैवीय और आसुरी वृत्तियों के बीच की लड़ाई का बयान करते हुए कवि ने वृत्तियों को मूर्तिमान बनाया है। इस कल्पना में इस बात से इंकार नहीं किया गया है कि पाण्डवों और कौरवों के बीच हस्तिनापुर के पास सचमुच युद्ध हुआ होगा। मेरी ऐसी कल्पना है कि उस ज़माने का दृष्टान्त लेकर कवि ने इस महान ग्रंथ की रचना की है। इसमें भूल हो सकती है या ये सब नाम ऐतिहासिक हो तो ऐतिहासिक आरंभ के लिए ये नाम देना बेजा भी नहीं माना जा सकता। विषय-विचार के लिए पहला अध्याय जरूरी है, इसलिए गीता-पाठ के वक्त उसे पढ़ लेना भी जरूरी है।

'महादेवभाईनी डायरी',
पहला भाग, पृष्ठ 223
18 जून, 1932

वह दिन याद आता है जब मि. बेकर मुझे वेलिंग्टन कन्वेन्शन में ईसाई बनाने को ले गये। वे हमेशा मेरे साथ चर्चा करते थे। मैं उन्हें कहता कि आप मुझमें श्रद्धा जाग्रत कीजिए। जो भी अच्छा असर आप मुझ पर डालना चाहते हों, वह डालने देने के लिए मैं तैयार हूँ। इसलिए उन्होंने कहा कि वेलिंग्टन कन्वेन्शन में चलो। वहाँ समर्थ लोग आयंगे। आप उनसे मिलेंगे तो आपको विश्वास हुए बिना रहेगा ही नहीं।

सारे डिब्बे में गोरे बैठे थे और मैं अकेला ऊपर के बंक पर दबा हुआ बैठा था। वे लोग कहने लगे, ‘"देखिये, हिक्स नदी आई, भव्य प्रदेश है। देखिये, सूर्योदय के दर्शन तो कीजिये!’" मगर मैं उतरता ही न था। मैं तो 11 वें अध्याय का पाठ कर रहा था। बेकर ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या पढ़ रहे है?’’ मैंने कहा, ‘‘भगवद्गीता।’’ उन्हें लगा होगा कि कैसा मूर्ख है कि बाइबिल नहीं पढ़ता! मगर क्या करते? उन्हें मुझ पर जबरदस्ती तो करनी न थी। कन्वेन्शन में मेरे लिए विशेष प्रार्थना भी हुई। मगर मैं कोरा-का-कोरा ही लौटा।

‘महादेवभाईनी डायरी’
पहला भाग, पृष्ठ 227
19 जून, 1932

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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