गीता माता -महात्मा गांधी
4 : गीता-ध्यान
पहले अध्याय में जो नाम दिये हैं, वे सब नाम मेरी राय में व्यक्तिवाचक होने के बजाय गुणवाचक ज्यादा हैं। दैवीय और आसुरी वृत्तियों के बीच की लड़ाई का बयान करते हुए कवि ने वृत्तियों को मूर्तिमान बनाया है। इस कल्पना में इस बात से इंकार नहीं किया गया है कि पाण्डवों और कौरवों के बीच हस्तिनापुर के पास सचमुच युद्ध हुआ होगा। मेरी ऐसी कल्पना है कि उस ज़माने का दृष्टान्त लेकर कवि ने इस महान ग्रंथ की रचना की है। इसमें भूल हो सकती है या ये सब नाम ऐतिहासिक हो तो ऐतिहासिक आरंभ के लिए ये नाम देना बेजा भी नहीं माना जा सकता। विषय-विचार के लिए पहला अध्याय जरूरी है, इसलिए गीता-पाठ के वक्त उसे पढ़ लेना भी जरूरी है। 'महादेवभाईनी डायरी', वह दिन याद आता है जब मि. बेकर मुझे वेलिंग्टन कन्वेन्शन में ईसाई बनाने को ले गये। वे हमेशा मेरे साथ चर्चा करते थे। मैं उन्हें कहता कि आप मुझमें श्रद्धा जाग्रत कीजिए। जो भी अच्छा असर आप मुझ पर डालना चाहते हों, वह डालने देने के लिए मैं तैयार हूँ। इसलिए उन्होंने कहा कि वेलिंग्टन कन्वेन्शन में चलो। वहाँ समर्थ लोग आयंगे। आप उनसे मिलेंगे तो आपको विश्वास हुए बिना रहेगा ही नहीं। सारे डिब्बे में गोरे बैठे थे और मैं अकेला ऊपर के बंक पर दबा हुआ बैठा था। वे लोग कहने लगे, ‘"देखिये, हिक्स नदी आई, भव्य प्रदेश है। देखिये, सूर्योदय के दर्शन तो कीजिये!’" मगर मैं उतरता ही न था। मैं तो 11 वें अध्याय का पाठ कर रहा था। बेकर ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या पढ़ रहे है?’’ मैंने कहा, ‘‘भगवद्गीता।’’ उन्हें लगा होगा कि कैसा मूर्ख है कि बाइबिल नहीं पढ़ता! मगर क्या करते? उन्हें मुझ पर जबरदस्ती तो करनी न थी। कन्वेन्शन में मेरे लिए विशेष प्रार्थना भी हुई। मगर मैं कोरा-का-कोरा ही लौटा। ‘महादेवभाईनी डायरी’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज