गीता माता -महात्मा गांधी
3 : गीता का अध्ययन
इसी तरह मुझको अपना आचरण रखना चाहिए, यह पाठ मैंने गीता जी से सीखा। अपरिग्रही होने के लिए, समभाव रखने के लिए, हेतु का और हृदय का परिवर्तन आवश्यक है, यह बात मुझे दीपक की तरह स्पष्ट दिखाई देने लगी। बस, तुरंत रेवाशंकर भाई को लिखा की बीमे की पालिसी बंद कर दीजिए। कुछ रूपया वापस मिल जाय तो ठीक, नही तो खैर। बाल-बच्चों और गृहिणी की रक्षा वह ईश्वर करेगा, जिसने उनको और हमको पैदा किया है। यह आशय मेरे उस पत्र का था। पिता के समान अपने बड़े भाई को लिखा, ‘‘आज तक मैं जो कुछ बचाता रहा, आपके अर्पण करता रहा। अब मेरी आशा छोड़ दीजिए। अब जो कुछ बच रहेगा, वह यहीं के सार्वजनिक कामों में लगेगा।’’ आत्मकथा’ , नवां संस्करण पृष्ठ 265 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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