गीता माता -महात्मा गांधी
1 : गीता-माता
विद्यार्थी की हैसियत से तुम गीता का ही अभ्यास करो, पर द्वेष-भाव से नहीं, भक्ति -भाव से। तुम उसमें भक्तिपूर्वक प्रवेश करोगे तो जो तुम्हें चाहिए वह उसमें से मिलेगा। अठारहों अध्याय कंठ करना कोई खेल नहीं है, पर करने जैसी चीज तो है ही। तुम एक बार उसका आश्रय लोगे तो देखोगे कि दिनों -दिन उसमें तुम्हारा अनुराग बढ़ेगा। फिर तुम कारागृह में हो या जंगल में, आकाश में हो या अंधेरी कोठरी में, गीता का रटन तो निरंतर तुम्हारे हदय में चलता ही रहेगा और उसमें से तुम्हें आश्वासन मिलेगा। तुमसे यह आधार तो कोई छीन ही नहीं सकता। इसके रटन में जिसका प्राण जायेगा, उसके लिए तो वह सर्वस्व ही है; केवल निर्वाण नहीं, बल्कि ब्रह्म-निर्वाण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज