गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्दों का अर्थ और स्थल-निर्देश)
दो शब्द
गांधी जी ने इसमें हरेक पद का अर्थ भी देकर इसकी उपयोगिता बढ़ा दी है। इसलिए इसको ʻगीता-पदार्थ-कोश̕ नाम दिया गया है। इस पदार्थ-कोश में उन्होंने पहले संस्कृत कोशों में दिये हुए अर्थ ही लिखे थे। बाद में जब उन्होंने गीता के अपने अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अनासक्ति योग लिखा तब उसमें दिये हुए अर्थ भी इस पदार्थ-कोश में जोड़ दिये गए। ऑर्डिनेन्स राज की धांधली के दिनों में यह संबंधित कोश खो गया। इसलिए अभी -अभी दो-तीन मित्रों ने गांधी जी के मूल हस्तलिखित पद से फिर मेहनत करके यह तैयार किया है और आज यह पाठकों के हाथ में दिया जा रहा है। यह कोश जैसा बना है, उससे गांधी जी को पूर्ण संतोष नहीं है। उनकी इच्छा थी कि अर्थ देना ही है तो प्रत्येक महत्व के शब्द को अलग-अलग भाष्यकारों ने और गीता के नये-पुराने अभ्यासियों ने अलग-अलग जो अर्थ किया है, वह सब व्यवस्थित रीति से दें। इससे भाष्यार्थ की तुलनात्मक अभ्यास सुलभ हो जाता। यह तो अर्थ-भेद की दृष्टि हुई। दूसरी रीति से भी अर्थकोश को शास्त्र-शुद्ध करने के लिए शब्दों का धात्वर्थ देकर उसके बाद गीता-युग तक इन शब्दों के अर्थ में कैसे अंतर पड़ता गया और गीता ने इन शब्दों का खास क्या अर्थ किया है, यह बताना चाहिए। उसके बाद तत्वज्ञान के विकास का अनुसरण करके भाष्यकारों को यह अर्थ क्यों बदलना पड़ा, यह भी थोडे़ में बताना चाहिए इस रीति से अर्थ-विकास की सीढियों अथवा प्रवाह को बताकर गीता के लिए पर्याप्त ʻसेमेन्टिकस्̕ [1] बनाना चाहिए। जैसा मनुष्यों का विकास होता है, वैसे मनुष्य-जाति में प्रयुक्त महान शब्दों के अर्थ में भी विकास होता जाता है। शब्द भी वस्तुत: सगुण पुरुष ही हैं। इस अर्थ-विकास के संबंध में अनासक्तियोग की प्रस्तावना में गांधी जी ने लिखा है: ʻ"मनुष्य की भाँति महावाक्यों के अर्थ का विकास भी होता ही रहता है। भाषाओं के इतिहास की जांच कीजिए तो मालूम होगा कि अनेक महान शब्दों के अर्थ नित्य नये होते रहे हैं...... गीताकार ने महा-शब्दों का व्यापक अर्थ करके अपनी भाषा का भी व्यापक अर्थ करना हमें सिखाया है।" आगे चलकर वह लिखते हैं: ʻʻगीता एक महान धर्मकाव्य है। उसमें जितने गहरे उतरेंगे, उतने ही नये और सुन्दर अर्थ उसमें से मिलेंगे..... गीता में आये हुए महाशब्दों का अर्थ युग-युग में बदलता और विस्तृत होता रहेगा। गीता का मूल मंत्र कभी नहीं बदल सकता। वह मंत्र जिस रीति से साधा जा सके, उस रीति से जिज्ञासु चाहे जो अर्थ कर सकता है।" गांधी जी की इच्छा के अनुसार ऐसा व्यापक और शास्त्र संपूर्ण गीता-पदार्थ-कोश जब तैयार होगा, तब होगा। इस समय तो हम उनकी बारह वर्ष पहले की प्रवृत्ति का फल गीताभ्यासियों के आगे रखते हैं। सरस्वती-पूजन 24-6-36 -दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शब्दार्थ-शास्त्र
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