गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्दों का अर्थ और स्थल-निर्देश)
दो शब्द
इस कार्य में इतना थोड़ा समय देने से यह बेगार जैसा नहीं मालूम होता था। उलटे, रोज उसका समय होने की मैं राह देखता। जब उसकी दूसरी बार की अनुक्रमणिका तैयार करने का समय आया तब तो मैं उसमें तल्लीन होने लगा। जिज्ञासु स्वयं इस बात का अनुभव कर देखे। जिन शब्दों का अनुक्रम मुझे ठीक करना था, उनके पहले अक्षरों का अक्षरानुक्रम मैंने तैयार किया, किंतु प्रत्येक अक्षर के शब्दों की आंतरिक अक्षरानुक्रम में किस रीति से लगायें, यह प्रश्न मेरे लिए जटिल हो गया। मैंने कभी शब्दकोश तैयार नहीं किया था। इससे मुझे स्वतंत्र रूप से काम करने की रीति खोजनी पड़ी और जब मैंने वह खोज ली तब मेरे आनंद का पार नहीं रहा। बचपन में जो आनंद गोली और कंचे के खेल में आता उससे भी अधिक आनंद मुझे इस अनुक्रमणिका को लगाने के खेल से मिला। यह रीति सुघड़, तेज और भूल होने ही न पाये, ऐसी थी। यह सारा काम पूरा करते मुझे अठारह महीने लगे। आज अब इस शब्दानुक्रम में देखकर मैं तत्काल जान सकता हूँ कि गीता-जी में आया हुआ कोई भी शब्द कहाँ और कितनी बार प्रयुक्त हुआ है। इसमें दूसरा भी अभिप्राय रहा है। यदि मैं कभी गीता के संबंध में अपने विचार लिखने में समर्थ हुआ तो इस शब्दानुक्रम और इन विचारों को पाठकों के समक्ष रखना भी चाहता हूँ। ऐसी बात नहीं है कि गीता का पदानुक्रम इसके पहले किसी ने तैयार न किया हो। थोड़ी-बहुत वाले ऐसे गीता-पद-कोश चार-पांच तो हैं ही, किंतु गांधी जी को अपने विनोद के लिए और जल की सहूलियत के लिए इस प्रकार का कोश स्वतंत्र, रूप से तैयार करना था। गांधी जी का मानस प्रत्येक क्षेत्र में शास्त्रीय रीति से काम करता है। गीता के अभ्यास की सुविधा के लिए उन्होंने एक बार अनेक भाषान्तरों के हरेक श्लोक के अनुवाद इकट्ठे करके टाइप कराये थे। इसे अंग्रेजी में ʻकान्कोर्डन्स̕ [1] कहते हैं। इसका उद्देश्य अक्षरानुक्रम से यह बताना होता है कि अमुक ग्रंथ में अथवा अमुक लेखक की तमाम रचनाओं में अमुक शब्द कहां-कहां और कितनी बार आया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सादृश्य
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