गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 241

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्‍दों का अर्थ और स्‍थल-निर्देश)
दो शब्‍द


मेरे अपने अभ्‍यास और नित्‍य प्रति के उपयोग के लिए मुझे गीता की एक शब्‍दानुक्रमणिका तैयार करनी थी। शब्‍द और उनके संबंध लिखने और दो-दो बार उनको क्रम से लगाने का काम बहुत रसपूर्ण नहीं है। मेरी धारणा थी कि अपने कारावास के समय मैं यह काम करूं, तो भी इस काम के लिए बहुत समय देना मुझे रुचिकर न था। मेरा समय- पत्र का भरा हुआ था। इससे रोज केवल बीस मिनट इस काम में देने का मैंने निश्‍चय किया।

इस कार्य में इतना थोड़ा समय देने से यह बेगार जैसा नहीं मालूम होता था। उलटे, रोज उसका समय होने की मैं राह देखता। जब उसकी दूसरी बार की अनुक्रमणिका तैयार करने का समय आया तब तो मैं उसमें तल्‍लीन होने लगा। जिज्ञासु स्‍वयं इस बात का अनुभव कर देखे। जिन शब्‍दों का अनुक्रम मुझे ठीक करना था, उनके पहले अक्षरों का अक्षरानुक्रम मैंने तैयार किया, किंतु प्रत्‍येक अक्षर के शब्‍दों की आंतरिक अक्षरानुक्रम में किस रीति से लगायें, यह प्रश्‍न मेरे लिए जटिल हो गया।

मैंने कभी शब्‍दकोश तैयार नहीं किया था। इससे मुझे स्‍वतंत्र रूप से काम करने की रीति खोजनी पड़ी और जब मैंने वह खोज ली तब मेरे आनंद का पार नहीं रहा। बचपन में जो आनंद गोली और कंचे के खेल में आता उससे भी अधिक आनंद मुझे इस अनुक्रमणिका को लगाने के खेल से मिला। यह रीति सुघड़, तेज और भूल होने ही न पाये, ऐसी थी। यह सारा काम पूरा करते मुझे अठारह महीने लगे।

आज अब इस शब्‍दानुक्रम में देखकर मैं तत्‍काल जान सकता हूँ कि गीता-जी में आया हुआ कोई भी शब्‍द कहाँ और कितनी बार प्रयुक्‍त हुआ है। इसमें दूसरा भी अभिप्राय रहा है। यदि मैं कभी गीता के संबंध में अपने विचार लिखने में समर्थ हुआ तो इस शब्‍दानुक्रम और इन विचारों को पाठकों के समक्ष रखना भी चाहता हूँ।

ऐसी बात नहीं है कि गीता का पदानुक्रम इसके पहले किसी ने तैयार न किया हो। थोड़ी-बहुत वाले ऐसे गीता-पद-कोश चार-पांच तो हैं ही, किंतु गांधी जी को अपने विनोद के लिए और जल की सहूलियत के लिए इस प्रकार का कोश स्‍वतंत्र, रूप से तैयार करना था।

गांधी जी का मानस प्रत्‍येक क्षेत्र में शास्‍त्रीय रीति से काम करता है। गीता के अभ्‍यास की सुविधा के लिए उन्‍होंने एक बार अनेक भाषान्‍तरों के हरेक श्‍लोक के अनुवाद इकट्ठे करके टाइप कराये थे। इसे अंग्रेजी में ʻकान्‍कोर्डन्‍स̕ [1] कहते हैं। इसका उद्देश्‍य अक्षरानुक्रम से यह बताना होता है कि अमुक ग्रंथ में अथवा अमुक लेखक की तमाम रचनाओं में अमुक शब्द कहां-कहां और कितनी बार आया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सादृश्‍य

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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